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Rangsaaj Ki Rasoi

Arun Kamal Author
Hardbound
Hindi
9789362872661
1st
2024
116
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रंगसाज की रसाई - सुपरिचित कवि अरुण कमल का सातवाँ कविता-संग्रह रंगसाज की रसोई उनकी काव्य प्रतिज्ञा और व्यवहार का नया सोपान है। एक नये अनुभव लोक का स्थापत्य। अरुण कमल जीवन के सम्पूर्ण वर्णक्रम का समाहार करने का यत्न इस संग्रह में भी करते हैं। इसीलिए यहाँ भी जन्म, मृत्यु, प्रणय, दैनन्दिन जीवन के सुख-दुख और अनेकानेक जीवन स्थितियाँ हैं, अनेक तरह के चरित्र हैं और कुछ भी निषिद्ध या वर्जित नहीं है। राजनीति के प्रत्यक्ष सन्दर्भ और प्रतिरोध का स्वर, जो अरुण कमल की कविताओं की विशेष पहचान रही है, इस संग्रह में कुछ अधिक ही परिमार्जित रूप में सक्रिय है। यह संग्रह नये रूपाकार और शिल्प प्रयोगों के लिए भी द्रष्टव्य है। अरुण कमल के किसी संग्रह में इतने शिल्प-प्रयोग पहले कभी नहीं मिलते। 'कुछ खाके' और ‘जेल में वार्तालाप' और 'सबसे छोटा दिन' तथा ‘लोककथाएँ' और 'एक कविता-कथरी' ऐसे ही कुछ दृष्टान्त हैं। यहाँ गद्य - कविताएँ भी हैं और छन्दोबद्ध पद भी। एक कविता-शृंखला अलग से ध्यान खींचती है। वो है 'मृत्यु शैया से एक भक्त का निवेदन' जो मृत्यु से जूझते व्यक्ति का लगभग सन्निपात में बोलना है, अनेक स्मृतियों, बिम्बों, काल-स्तर और भक्ति काव्य की छवियों को जाग्रत करता। यह शृंखला धर्म, ईश्वर और मानव सम्बन्धों की साहसिक पड़ताल भी करती है। यहाँ कविता का 'मैं' कोई भी व्यक्ति हो सकता है, स्वयं कवि ही जरूरी नहीं। अरुण कमल की यह अपने से बाहर जा सकने की क्षमता उनकी एक विशेष शक्ति है। चाहे वह बोरिस बेकर वाली कविता हो या कामगारों वाली, या वैद्य वाली।
अरुण कमल अनेक स्वरों, अनेक चरित्रों और स्थितियों में बोलते हैं, उनसे एकाकार भी और अलग भी, लगभग एक नाटककार की तरह। मै सबमें हूँ और सब मुझमें हैं, ऐसा अर्जा है। और कभी भी कविता अपना धर्म नहीं छोड़ती। अरुण कमल भावों के कवि हैं; वार्ता नहीं, बिम्ब और लय के चारु कवि।
इस संग्रह तक आते आते लगता है कि कवि का ध्यान अब जीवन के रहस्यों, मृत्यु सम्बन्धी प्रश्नों, मानव सम्बन्ध की गिरहों और आभ्यन्तर की ओर अधिक जा रहा है। कविता का दर्पण एक खोजबत्ती में बदलने लगता है, भीतर की ओर मुड़ता हुआ। जीवन का अर्थ, मूल्य और मनुष्य का आन्तरिक जगत अब अग्रभूमि में है। इसीलिए छोटे से छोटे प्रसंगों में भी एक विषाद और करुणा है और दूर तक भाव-प्रक्षेप की अमोघ शक्ति। यहाँ हर वस्तु की सार्वजनीनता और निजता एक साथ सुरक्षित है। अरुण कमल के इस सातवें संग्रह में भी बिल्कुल नये और अप्रत्याशित उपमान हैं और प्रत्येक कविता के बनने की अपनी विशिष्ट गति जो प्रदत्त स्थिति या पात्रों के स्वभाव से निर्धारित होती है। इतने पात्रों, स्थितियों और द्वन्द्वों से भरा यह संग्रह किसी शहर के भीड़ भरे चौक सा संकुल और जीवन्त है। प्रत्येक कविता हमें विह्वल या व्यग्र करती है। और प्रचलित भाव तथा विचार परिपाटियों से सर्वथा भिन्न क्षेत्रों में ले जाती है। साथ ही वह अपना निरीक्षण भी करती चलती है, ऐसी आँख जो खुद को भी देखती रहे। 'सुराग', 'नागार्जुन', 'बहादुर शाह ज़फ़र' या 'इक़बाल' और 'आशीर्वाद' (वल्लतवूर) शीर्षक कविताएँ स्वयं कविता और कवि की भूमि तथा भूमिका का विश्लेषण हैं जबकि 'रंगसाज की रसोई' रचनाकार की सृजन प्रक्रिया और नेपथ्य, तथा कलाओं के परस्पर सम्बन्धों को आलोकित करती है। अरुण कमल की कविता अनेक धागों, अनेक गाँठों वाली कविता है, लेकिन वह ऐसी कविता भी है जो हर बन्दे से उसी की बोली में बोलती है।

अरुण कमल (Arun Kamal)

15 फरवरी, 1954, नासरीगंज, रोहतास (बिहार) में जन्म। छह कविता पुस्तकें अपनी केवल धार, सबूत, नये इलाके में, पुतली में संसार, मैं वो शंख महाशंख और योगफल। तीन कविता चयन भी प्रकाशित। दो आलोचना पुस्तकें कवि

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