जनतन्त्र का अभिमन्यु - हिन्दी के जाने-माने रचनाकार उमेश चौहान का नवीनतम कविता संग्रह है : 'जनतन्त्र का अभिमन्यु'। युवावस्था की रूमानी कविताओं व गीतों की बात छोड़ दी जाये तो इस संग्रह की रचनाओं को प्रतिक्रियावादी कहा जा सकता है। आसपास घटित होती बातों से सभी का मन प्रभावित होता है। जब इस प्रभाव का अतिरेक होता है तो कवि के मन में उन बातों के प्रति तीखी प्रतिक्रिया होती है। इन्हें अभिव्यक्त करने के प्रयास के परिणामस्वरूप ही उनकी अधिकांश कविताओं का जन्म हुआ है। इनमें कहीं उनके जन्मदाता गाँव का परिवेश है, तो कहीं वर्तमान जीवन से जुड़ा शहरी वातावरण। एक सरकारी कर्मचारी होने के कारण, अभिव्यक्ति के मामले में बराबर आचरण नियमावली से बँधे रहना पड़ता है। फिर भी प्रस्तुत रचनाकार अपने तरीक़े से व्यवस्था की हर बुराई की तीखी आलोचना करने से कभी नहीं चूकते। हाँ, कोई राजनीतिक पक्ष कभी नहीं लेते, जो मनुष्य-संगत है, उसी के प्रति उनका लगाव रहता है। जो कुछ अमानवीय है, उसे जड़ से उखाड़ फेंकने का ही उनका मन करता है। मुक्तिबोध का यह कथन कि, 'अब अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठाने ही होंगे' सदैव उनका आदर्श रहा है। साहित्य के प्रति इसी तरह के योगदान की एक कड़ी के रूप में रचनाकार उमेश की हाल में लिखी गयीं कुछ कविताओं का यह संग्रह है — 'जनतन्त्र का अभिमन्यु'। उनके इस संग्रह में काव्य की विविध विधाओं, मसलन नयी शैली की गद्य-कविताएँ हैं, नवगीत हैं, प्रेमकविताएँ हैं और अवधी कविताओं की एक झलक भी है। निःसन्देह, काव्य-प्रेमी पाठक इसका स्वागत करेंगे।
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