कबीर की रचनाओं और जीवन की आलोचना करने पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि उन्होंने भारतवर्ष की समस्त बाह्य कुरीतियों को भेदकर उसके अन्तर की श्रेष्ठ सामग्री को ही भारतवर्ष की सत्य-साधना के रूप में उपलब्ध किया था; इसलिए उनके पन्थी को भारतपन्थी कहा गया है। विपुल विक्षिप्तता और असंलग्नता के मध्य भारत किस निभृत सत्य में प्रतिष्ठित है, ध्यानयोग के द्वारा इसे वे सुस्पष्ट रूप से देख पाये थे ।
-रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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