मुझे और अभी कहना है - छायावाद के बाद नयी कविता धारा में नूतन सौन्दर्य चेतना, लोक धर्मिता, प्रगतिशील सामाजिकता, प्रयोगशीलता और वैज्ञानिकता के प्रमुख शिल्पी गिरिजा कुमार माथुर की सम्पूर्ण काव्य-यात्रा के पदचिह्न इस संकलन में विद्यमान हैं। परम्परा और आधुनिकता, सौन्दर्य और यथार्थ, मर्मशील प्रगीतात्मक एवं महाकाव्यात्मक ऊर्जा, विद्रोही संकल्पशीलता, जनपदीय जीवन की लोक-चेतना और अन्तरिक्ष युग के सृष्टि-विज्ञान की भविष्यवादिता एक साथ उनकी कविता में समाहित हुई है। वर्तमान युग के आधुनिकतम जीवन-मूल्य को अपने सांस्कृतिक उत्स की मिट्टी रोप कर आत्मसात् करने वाले उनके काव्य व्यक्तित्व की विशिष्ट पहचान है। उनके कृतित्व की मूर्त एवं मांसल ऐन्द्रियता, यथार्थ जीवनदृष्टि, नया कथ्य, नूतन भाषा, शिल्पतन्त्र तथा सूक्ष्म लय, छन्द और बिम्ब के चमत्कारी प्रयोगों ने हिन्दी कविता को एक बिल्कुल नया मुहावरा दिया। गिरिजा कुमार माथुर को अर्थ-सौन्दर्य और ध्वनि सौन्दर्य पहचानने की असाधारण क्षमता है। साथ ही उनका कविता-संसार मनुष्य की अदम्य आस्था से दीप्त है। उन्होंने एक नयी विश्व दृष्टि विकसित की जिसमें जीवन के आलोक को वाणी मिली है। उनकी कविता ज़िन्दगी की ज़मीन से सीधी जुड़ी है। 'मुझे और अभी कहना है' में गिरिजा कुमार माथुर की 1937-90 की सभी श्रेष्ठ रचनाएँ संकलित हैं। उनकी प्रत्येक कविता की अन्तर्योजना और गुम्फन में विचार और भावना के तार पूरी तरह कसे हुए हैं। इन कविताओं को पढ़ते हुए पाठक को लगेगा कि वह बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 50 वर्ष के परिवर्तनों के तमाम अनुभवों और धड़कनों के बीच गुज़र रहा है और इसीलिए ये कविताएँ अपने समय का प्रामाणिक कलात्मक दस्तावेज़ लगती हैं।
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