सेमरसोत में साँझ - 'सेमरसोत में साँझ' पीयूष कुमार की कविताओं की पहली किताब है। पीयूष कुमार लोक जीवन, जनजातीय संस्कृति, लोकगीत-नृत्य आदि से पूर्णत: सम्पृक्त हैं। ये उसी सम्पृक्ति से अपनी कविताएँ गढ़ते हैं, कभी भोक्ता तो कभी दर्शक बनकर। इस संग्रह में आम जीवन की कविताएँ हैं जहाँ पर कुछ भी दिव्य या भव्य नहीं है। यहाँ सामान्य जीवन की सुन्दरता अपने राग अनुराग के साथ उपस्थित है। सेमरसोत उत्तरी छत्तीसगढ़ का एक वन्यजीव अभयारण्य है, जिसको कवि ने अपने काव्य चिन्तन के उत्स से एक धुरी के रूप में उपस्थित किया है उसी धुरी पर टिक कर कवि अपने लोक से त्रिभुवन और ब्रह्मांड को देखना चाहता है। कवि इन सबके बीच से सरगुजा अंचल के आदिवासी जीवन का चित्र अपनी कविताओं में उपस्थित करता है जहाँ सेन्दुर नदी बहती है और जिसकी जलधारा के साथ करमा लोकनृत्य उपस्थित होता है। पीयूष की कविताओं की दुनिया बहुरंगी है और विषय वैविध्यपूर्ण। काल-पात्र से इनका संवाद निरन्तरता में है। यह संवाद बहुकोणीय है। कहीं सरगुजिहा आदिवासी स्त्री है तो कहीं वैदिक कालीन अपाला, गार्गी और लोपामुद्रा भी। इतिहास-मिथक और समकालीन सरोकारों से ये कविताएँ अपनी त्रिगुणात्मकता निर्मित करती हैं। हर कविताओं के भिन्न आस्वाद, गहरी संवेदनशीलता और लोकजीवन के शब्द पाठकों को अपनी ओर खींचते हैं। जहाँ मौसम, जलवायु और पर्यावरण को लेकर हमारा कवि सचेत है वहीं उसे संरक्षित रखने को लेकर हिन्दी भी है। वह स्टीफ़न हॉकिंग से लेकर शेक्सपियर तक और जॉर्ज क्लॉयड से लेकर अदृश्य हत्यारों तक इन सबको अपनी पनीली आँखों से निहार रहा है और नीर-क्षीर विवेक के साथ उसकी परख भी करता जाता है। कवि जीवन बचाने को लेकर आग्रही है, प्रेम को लेकर भी जहाँ पर उसका प्रेम पुनर्जन्म की स्थापना को भी स्वीकृति देता है। कवि का प्रेमी मन कवि की दुनिया की एक-एक चीज़ से प्रेम करता है। स्मृतियों की बहुलता और दृश्य उपस्थापन की कला पीयूष के पास है, इसी से कवि का भूगोल बड़ा हो जाता है। इस वैविध्यपूर्ण जीवन के रस परिपाक से निर्मित आदिवासी कला, संस्कृति और लोकजीवन से गठित इन कविताओं का हिन्दी कविता के पाठक स्वागत करेंगे, ऐसी आशा है। 'सेमरसोत में साँझ' कविता संग्रह को भरपूर स्नेह और प्यार मिले, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।—अरुणाभ सौरभ
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