Parmanu, Agar Parinde Hote ?

Rajesh Jain Author
Hardbound
Hindi
9789390659913
1st
2021
120
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परमाणु, अगर परिन्दे होते? - आज के 'प्रौद्योगिक-आध्यात्मिकता' (टेकनो-स्प्रिच्युल) युग में साहित्य को समाज का मात्र दर्पण ही नहीं, वरन 'बुद्धिमान-दर्पण' (इंटेलीजेंट मिरर) कहा जाता है अर्थात उसमें समाज की जीवन्त छवि का समावेश होता है इस परिप्रेक्ष्य में अगर कविताओं के माध्यम से विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण भी अपनी सम्पूर्ण संवेदनाओं के साथ साहित्य (शब्द-ऊर्जा संसार) मंक प्रवेश करते हैं, तो 'परमाणु, अगर परिन्दे होते?' जैसी अप्रतिम कृतियाँ सामने आती हैं। हिन्दी के वरिष्ठ इंजीनियर-साहित्यकार राजेश जैन द्वारा रची गयी इस संग्रह की कविताएँ और लम्बी भूमिका, अभिव्यक्ति के एक सर्वधा नये आयाम को पहली बार उजागर करती हैं। 'रौशनी के खेतों में', 'जिनांजलि' तथा 'शब्द-शिला' के बाद यह उनका चौथा कविता-संग्रह है। उलेखनीय है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित अद्वितीय रचनात्मक साहित्य के अन्तर्गत राजेश जैन, पूर्व में सैकड़ों कहानियाँ, नाटक (वायरस, चिमनी चोगा, कोयला चला हंस की चाल आदि), उपन्यास (बाँध वध, बर्ड हिट, सूरज में खरोंच और टावर ऑन द टेरेस), व्यंग्य और बाल-साहित्य भी लिख चुके हैं।

राजेश जैन (Rajesh Jain)

राजेश जैन - जन्म: 16 जुलाई, 1949। शिक्षा: इंजीनियरिंग, प्रबन्धन और ऊर्जा-अंकेक्षक। कृतियाँ —उपन्यास : गीली धूप, बाँध-वध, बर्ड हिट, सूरज में खरोंच, टावर ऑन द टेरेस, सुरंग में गुफाएँ; कथा संग्रह : बिके हुए

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