कविता मेरी साँस -
सी. नारायण रेड्डी के कवि हृदय में आरम्भ से ही शान्ति और प्रगति के लिए गहन एवं अटूट आस्था की अन्तर्धारा प्रवहमान रही है। हालाहल के उफनते फेन को अमृत कणिकाओं में प्रवर्तित करने तक अपने अन्तर्मन्थन को जारी रखने का प्रण कर कवि यह आशा करता है कि जिस भूमि पर रक्त छिड़का गया वहीं एक दिन इत्र की बौछार होकर रहेगी।
यद्यपि कवि के यौवन का कुछ समय रोमानी भाव-गीतिका के प्रभा-भास्वर पंखों पर आसीन रहा है, फिर भी उसका यथार्थ से सम्पर्क कभी नहीं टूटा। वर्तमान समाज में आत्यन्तिक स्थितियों के बीच चिथड़े-चिथड़े होते मनुष्य की दुर्दशा को देखकर कवि का हृदय मर्माहत हो उठता है। लेकिन फिर वह उन परिस्थितियों के ख़िलाफ़ मोर्चा भी सँभाल लेता है। और तब विश्व मानवता पर आस्था रखते हुए वह 'अक्षरों के गवाक्ष' से कहता है कि जब तक चिन्तन की ज्वाला प्रज्वलित रहेगी तब तक जीवन के लिए सर्वत्र उषा ही है, सायं-सन्ध्या नहीं। वर्तमान सामाजिक समस्याओं में उलझे मनुष्य के लिए वह इन्द्रधनुष के रंगीन चित्र प्रस्तुत करता है। आज के अत्याचार, अन्याय और आसुरी प्रवृत्तियों के कारण मनुष्य के मन-मस्तिष्क में जो शोले भड़क उठते हैं उसमें सबकुछ स्वाह हो जाता है, लेकिन तब मानवता का चिरन्तन रूप कहीं और अधिक निखार पा जाता है। कवि का विश्वास है कि मानव की उँगलियाँ चाबुक के समान, चरण किरणों की भाँति, चितवन दावाग्नियों की नाईं और विचार शतध्नियों (तोपों) के समान बन जायें और अनवरत जागरण एवं सतत संघर्ष होता रहे तो वह समय दूर नहीं जब मानव विश्वशान्ति के अपने लक्ष्य को पा लेगा।
ऐसे प्रगतिशील कवि की प्रतिनिधि कविताओं का यह संकलन प्रकाशित करते हुए ज्ञानपीठ को गर्व है।
Log In To Add/edit Rating