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Kavita Mein Ugi Doob

Hardbound
Hindi
9789326354134
1st
2015
112
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₹150.00

कविता में उगी दूब - कितनी नमी थी इबारत में पढ़ते ही भीग गयीं आँखें दिलीप शाक्य की कविताएँ इधर के काव्य स्वभाव से अपने को अलग करती धीरज के साथ पढ़े जाने का निवेदन करती हैं। ये कविताएँ मोटे तौर पर फौरी प्रसंगों और विमर्शों के बरअक्स स्वप्न, नींद, अनुभव और अनसुनी पुकारों की कविताएँ हैं। बहुत बोलने की जगह यह चुप्पी में जीवन को पढ़ने और समझने की कविताएँ हैं। शोर-शराबे के बीच ये धीमी और मद्धिम आवाज़ों को ध्यान से पहचानने और अबेरने की कविताएँ हैं। ये साँसों के स्पन्दनों तक हौले से पहुँचकर अनाम दुख-सुख को पकड़ने के यत्न में डूबी हैं। यातना के रंगों तक पहुँच बनाती इन कविताओं में परम्परा के गहरे नुकूश हैं। ये भूले जा चुके स्वाद, गन्ध और स्पर्शों में लौटकर नयी होती हैं। इनमें प्रेम की विरल सान्द्रता की अनूठी परछाइयाँ हैं, जिन्हें ठहरकर देखने का वक़्त बीतने की प्रक्रिया में है। दिलीप शाक्य अपने परिवेश में गहरी आसक्ति के साथ प्रवेश करते हैं इसलिए प्रकृति के अनेक रंगों का गुपचुप चित्रांकन कविता में निरायास ढंग से होता है। कवि के अन्तर्जगत की रोशनी कविताओं को आधुनिक समय की विडम्बनाओं से जोड़कर नये आशयों में ले जाती हैं। प्रकृति और सृष्टि की पक्षधरता में इन कविताओं का होना ही, इनकी उपलब्धि है।

दिलीप शाक्य (Dileep Shakya )

दिलीप शाक्य - जन्म: 18 दिसम्बर, 1976। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से एम.ए., एम.फिल., पीएच.डी.। प्रकाशन: प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कविताएँ, आलेख एवं कहानियाँ प्रकाशित। सिनेमेटोग्राफ़ी के

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