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युग युग से तू ही

Hardbound
Hindi
9789357755634
1st
2024
92
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अजय कांडर द्वारा रचित और सुधाकर शेंडगे द्वारा मराठी से हिन्दी में अनूदित युग-युग से तू ही बाबासाहब डॉ. भीमराव आम्बेडकर पर केन्द्रित एक लम्बी कविता है। यह कविता की पुस्तक बाबासाहब आम्बेडकर के जीवन, संघर्ष और उनके द्वारा किये गये सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन को प्रभावित करने वाले युग प्रवर्तक कार्यों की विशद व्याख्या करती है। साथ ही वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनका मूल्यांकन भी करती है। बाबासाहब आम्बेडकर ने समाज को समानता, स्वतन्त्रता और भ्रातृत्व की राह दिखायी । वह कोई टेढ़ी-मेढ़ी राह नहीं है, एकदम सीधी और सरल है। इस राह पर कोई भी चल सकता है और सबसे बड़ी बात यह कि इस राह पर सब साथ-साथ चल सकते हैं। इस राह पर चलने से किसी को कोई भी ऊँचा-नीचा, छोटा-बड़ा या सछूत-अछूत नहीं दिखाई देगा, सब मनुष्य दिखाई देंगे। कवि बाबासाहब आम्बेडकर को ऐसे महापुरुष के रूप में देखता है जिनका जाति से ऊपर उठकर मनुष्यता में विश्वास है तथा मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल देते हैं। कवि के शब्दों में-

“इस दुनिया में

अकेले तुम ही हो

जिसके खून में मुझे कहीं भी

न जाति, न धर्म, न पन्थ

न ईश्वर कहीं दिखाई दिया।”

यह सही भी है क्योंकि बाबासाहब अकेले ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने जातिविहीन एवं वर्गविहीन समाज के निर्माण का आह्वान किया और उसके लिए दीर्घ संघर्ष किया तथा संकीर्णतावादी और विषमतावादी धर्म को त्यागकर बौद्ध धम्म को अपनाया । धम्म अर्थात प्रज्ञा, शील और करुणा, समता, मैत्री और बन्धुता का मार्ग, जबकि समाज में जाति और धर्म के आधार पर समाज में वैमनस्यता, विरोध और हिंसा देखने को मिलती है। वर्चस्व की मानसिकता के लोग सबके साथ चलने को तैयार नहीं, वे अपनी अलग राह पर ही चलना पसन्द करते हैं। जातिगत श्रेष्ठता के अहंकार से मुक्त होकर, मनुष्यों के साथ मनुष्य होकर जीना उन्हें स्वीकार्य नहीं है, इसलिए वे प्रेम, सद्भाव के सीधे, सरल विचार को नहीं अपनाते, अपितु घृणा, हिंसा और असमानतावादी विचारों का पालन करते हैं। वर्चस्ववाद की यह अहंकारी भावना मनुष्यता का निरन्तर ध्वंस और दमन कर रही है। जातीय और सम्प्रदाय की अस्मिताओं की आग में जलती मनुष्यता को बचाने के लिए यदि सच्चे और पूरे मन से कोई आगे आया तो वह बाबासाहब आम्बेडकर थे।

-डॉ. जयप्रकाश कर्दम

सुधाकर शेंडगे (Sudhakar Shendge)

प्रो. सुधाकर शेंडगे जन्म : 19 अक्तूबर 1966प्रोफ़ेसर एवं पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद (महाराष्ट्र) 431004प्रकाशित पुस्तकें :'वारकरी सम्प्रदाय औ

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अजय कांडर (Ajay Kandar)

अजय कांडर जन्म : 9 अगस्त, 1970प्रकाशित पुस्तकें : आवानओल (काव्य संग्रह); हत्ती इलो (लम्बी कविता); युगानुयुगे तूच (2019) (लंबी कविता); अजूनही जिवन्त आहे गांधी (लंबी कविता)पुरस्कार : जैन फांउडेशन, जलगाव, महा

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