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बिल्कुल तुम्हारी तरह - जितेन्द्र श्रीवास्तव की प्रेम-कविताओं में शब्द अर्थ में पिघल जाता है और अर्थ शब्द का रूपाकार ग्रहण कर लेता है। उनकी कविता जिस ताक़त से अपनी जगह बनाने में सफल है, उसका उत्स उसकी प्रेम-संवेदना में ही है। दैहिक और निजी सन्दर्भों के स्तर पर पक कर यह 'प्रेम' उनकी कविता में एक नयी व्याप्ति प्राप्त करता है। 'प्रेम' की व्याप्ति जितेन्द्र की कविताओं में न केवल स्त्री की आन्तरिक दुनिया की वेदनाओं तक फैली हुई है बल्कि इसकी ज़द में वह सारा समय-समाज दाख़िल होता है जो किसी न किसी रूप में कवि के निजी अनुभव का हिस्सा रह चुका है। यहाँ कवि खुलकर स्वीकार करता है कि वह प्रेम ही है जिसने उसे और उसकी संवेदना को अधिक मानवीय भावाकुल और निडर बनाया है। जितेन्द्र श्रीवास्तव की प्रेम कविताएँ दाम्पत्य से जल, वायु और धूप ग्रहण करती हैं। यह लालसा से नहीं, साहचर्य से जनमा प्रेम है। इसमें साधारण का औदात्य है। छोटी-छोटी स्मृतियों के ज़रिये बुनी गयी इन कविताओं की गहराई पाठकों से अलक्षित नहीं रह पायेगी। ये जीवन के प्रति गहरी आस्था से उपजी कविताएँ हैं। इन कविताओं में अभिव्यक्त प्रेम दुनिया से कटकर सार्थकता नहीं पाना चाहता। वह इसी जीवन का, उसके दुख-सुख का हिस्सा है। एक ऐसे समय में जब विद्रोह के प्रचलित शब्द बेमानी होने लगें, संघर्ष के सारे रूपों को आततायी सत्ता की संस्कृति सन्देहास्पद बनाने लगे, तब प्रेम कविताओं की ज़रूरत बढ़ जाती है। कवियों के दायित्व भी बढ़ जाते हैं। यह सुखद है कि जितेन्द्र का कवि सरल-निश्छल जीवन की खोज में हर उस जगह जाना चाहता है जहाँ प्रेम एक आदत की तरह हो। वही जीवन का सार हो। उनका प्रेम दैहिक दायरे से निकलकर अपने विस्तार में पूरी कायनात को समेट लेने को उत्सुक है। न केवल उत्सुक बल्कि कल्पना की असम्भव हदों तक जाकर उस स्वप्न संसार को सम्भव कर लेना चाहता है। निश्चय ही, यह जीवन को नया अर्थ देने वाली कविताएँ हैं।
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