वरिष्ठ पत्रकार वंदना मिश्र की कविताओं से गुज़रना अनुभूति की सघनता से होकर गुज़रने जैसा है। खोजी पत्रकारिता वाली उनकी नज़र इन कविताओं को अद्भुत काव्य दृष्टि प्रदान करती है जिसमें जीवन के सूक्ष्मातिसूक्ष्म संवेदन को सहज ही देखा जा सकता है। इन कविताओं को 'भाषा में घटित होता हुआ जीवन' कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी। कुछ कविताओं में तो प्रत्यक्ष लगता है मानो 'जीवन' स्वयं भाषा के जल में अपना प्रतिबिम्ब देख रहा हो।
वंदना जी ने अपने कविकर्म को सामाजिक सरोकारों की कसौटी पर बार-बार कसा है, इसलिए इन कविताओं में शब्द की गरिमा और काव्यानुभूति की ऊर्जा की अपूर्व छटा स्पष्ट देखने को मिलती है। इन कविताओं में अर्थ की गहनता तो है किन्तु ऐसा नहीं कि वह पाठक को किसी रहस्यमय पाताल की गहराई में ले जाकर डुबो दे। सहज, सरल, सामान्य जीवनानुभवों के माध्यम से संघर्ष और जीवन की सुन्दरता को रेखांकित करती हुई इन कविताओं में, पिटे-पिटाए मुहावरों और चतुर वाग्जाल से बचते हुए, कवि ने एक नयी कहन और काव्यभाषा का सूत्रपात किया है। हिन्दी कविता की वर्तमान एकरूपता और रूढ़ि से हटकर एक नये क़िस्म का आस्वाद इन कविताओं की विशेषता है।
सबके मन की बात कह देने वाली वंदना मिश्र की ये कविताएँ अग-जग की बात बतकही की ही कविताएँ हैं ।
निश्चित ही इस कविता संग्रह के पाठ का अनुभव हिन्दी पाठकों की संवेदना और चेतना को नयी ऊर्जा से समृद्ध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।
-दिनेश कुमार शुक्ल
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