तोहफे काँचघर के' नवगीत के समर्थ हस्ताक्षर डॉ. उमाशंकर तिवारी का तीसरा संकलन है। ये तोहफे विशेषतः उस पीढ़ी के लिए हैं जो विकास और सभ्यता की आड़ में मनुष्यत्व को लीलते-फैलते ऐन्द्रजालिक महानगरों में सत्तापरस्त सियासत के रंगीन धोखों से बेखबर हैं और उसकी तिलिस्मी बेड़ियों को 'मोक्ष' मान बैठी है। अर्थात ये तोहफे आज के तिलिस्मी काँचघरों में बेखबर जीने वालों के लिए हैं। समकालीन कविता आज की मानवीय विसंगतियों के विरुद्ध एक आक्रोशयुक्त खबर है। वह आगाह करती है और मिटते हुए मानवीय सन्दर्भों को केन्द्र में रखकर समाधान की तलाश की आवश्यकता को रेखांकित करती है और उसके प्रति सम्वेदनशील बनाती है क्योंकि अभी भी आज के बिखरते टूटते-गिरते आदमी के भविष्य पर उसे विश्वास है। 'नवगीत' की यही केन्द्रीय काव्य-चिन्ता है जिसकी अनूठी अभिव्यक्ति 'तोहफे काँचघर के' संग्रह में मिलेगी। बिम्बों और प्रतीकों की जटिल बुनावट से बचती हुई इस संकलन की कविताएँ अपने सहज-सरल नाद-लय-बोध के साथ आज के संकट का साक्षात्कार करती और कराती हैं। अपनी सहजता और सादगी में भी ये अभिव्यक्ति की सूक्ष्मता और सम्प्रेषण की सामर्थ्य का एहसास देती हैं। जगह-जगह तिवारीजी के प्रयोगधर्मा कवि-मन की खबरें भी मिलती रहती हैं और इस प्रकार इस संकलन की अनेक कविताएँ 'नवगीत' के लिए नये क्षितिज खोलती हैं। उम्मीद है कि ये तोहफे काँचघर वालों को भी सम्वेदित करेंगे और पसन्द आयेंगे।
परमानन्द सिंह
सम्पादक : समकालीन सोच गाजीपुर
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