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Besharam Ke Phool

Rekha Maitra Author
Hardbound
Hindi
9788181436412
1st
2007
88
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₹150.00

रेखा मैत्र की कविताओं में नई सदी की परिस्थितियों के बीच उपजा सौन्दर्य है। उनकी कविताओं से गुजरते हुए पाठक धरती की विविधताओं को महसूस कर सकता है।

यह रेखा मैत्र की पोयटिक नज़रों का कमाल है कि वे जीवन की विविधता और बनावटी पन के बीच प्रकृति की सहजता और स्वभाविकता उनकी कविता को समकालीन काव्य परिदृश्य में ऐसे उच्च स्थान पर पहुँचाती है, जहाँ पहुँचना युवा कवियों की ललक होती है।

रेखा मैत्र की कविता एक भाव यात्रा है। वह प्लेटफार्म पर खड़ी होकर एक ऐसी रेलगाड़ी पकड़ना चाहती है जो असीम तक जाती हो। वास्तविक जीवन में ऐसी रेलगाड़ी की कमी, कवित्री की कविता पूरी करती है।



बेशर्म के फूल

अजीब सा लगा था ये नाम
पहले जब सुनने में आया
उससे मिलने पर महसूस हुआ
बड़ी समानता थी, उस फूलों से उसकी !

जिंदगी ने तो उसे रौंद - रौंद डाला था
कभी हालात उसे रास नहीं आए
कभी वो हालातों को
हार तब भी नहीं मानी उसने
खिलती रही, इतराती रही
जैसे वो ज़िंदगी को
अँगूठा दिखा रही हो !

"मुझे कुचलो तो जानूँ
मैं हूँ बेशर्म का फूल !”

रेखा मैत्र (Rekha Maitra)

रेखा मैत्र का जन्म बनारस (उ.प्र.) में हुआ। प्राथमिक शिक्षा बनारस में होने के बाद आपने सागर विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। तदनन्तर, मुम्बई विश्वविद्यालय से टीचर्स ट्रेनिंग में

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