‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' इस ऐतबार से भी सही है कि हिन्दुस्तान रंगारंग धर्मों, जातियों, सम्प्रदायों का देश तो है ही, हिन्दुस्तान भाषाओं और बोलियों का भी ऐसा बाग़ है जिसकी कोई दूसरी मिसाल दुनिया में नहीं। ...अमेरिका में जो भारतीय अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण रच-बस गये हैं, उनमें से कोई सॉफ़्टवेयर इंजीनियर है, कोई प्रोफ़ेसर और कोई डॉक्टर, हिन्दुस्तानी प्रवासी (diaspora) तरह-तरह के कामों से जुड़ा हुआ है और बाहर से आकर अमेरिका में बसने वालों में अपनी अलग पहचान रखता है। लोग घर में या कामकाज में सुबह से शाम तक अंग्रेज़ी बोलें, उनके ख़ून से तीन चीजें कभी नहीं जा सकतीं-भारतीय संस्कृति, भारतीय संगीत और भारतीय भाषाएँ। इन सबकी सिरमौर हिन्दी है जो केन्द्रीय भाषा कहलाती है। लेकिन आम बोलचाल और फ़िल्मों या संगीत में हिन्दुस्तानी और उर्दू का चलन भी दूर-दूर तक है। भाषाओं का रस माँ के दूध के साथ-साथ आता है। यह न हो तो संस्कृति, चेतन और अवचेतन कुछ भी नहीं। ...जब चीज़ें फैलती हैं। और मशहूर होती हैं तो कच्चा-पक्का बँट जाता है। पतझर में जो पत्ते झड़ते हैं वह आगे चलकर बहार के फूलों में खिलते हैं। इस तरह ख़ूब से ख़ूबतर का सफ़र जारी रहता है। है ज़ुस्तज़ू कि ख़ूब से है ख़ूब तर कहाँ अब ठहरती है देखिए जाकर नज़र कहाँ -गोपी चन्द नारंग (पद्मश्री, पद्मभूषण)
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