Lalmuniya, Ghonsla Kahan Banaogi

Hardbound
Hindi
9789352294725
1st
2016
132
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हमारे चारों ओर जो कुछ भी बिखरा है, फैला है, पसरा है और घटता रहता है वह सब कुछ हमें एक ऊर्जा भी देता है और दृष्टि-सम्पन्न भी बनाता है। यह बहुत कुछ सबके जीवन में हैं, और मैं भी इससे अलग नहीं हूँ। गहराई से विचार करने पर हम पाते हैं कि इस बहुत कुछ में कुछ अनकहा भी है और वह अपनी उपस्थिति पाता है कविता की संरचना में।.... कुछ खोजने की तलाश में ये कविताएँ स्मृतियों से लेकर समुद्र की हवाओं, जंगलों से लेकर गाँव और खेतों तक जाती हैं और जीवन के बहुविध दृश्यों को स्पर्श करती चलती हैं। जीवन की अनेक छवियों ने मन को कहीं-कहीं गहरे तक छुआ है और वे छवियाँ शब्दों के माध्यम से प्रतिकृति के रूप में ढलकर उपस्थित हुई हैं। ऐसे ही बन पड़ी हैं ये कविताएँ ।

आनन्द वर्धन (Anand Wardhan )

कविताएँ, कहानियाँ, संस्मरण, समीक्षाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं- परिकथा, लमही, वसुधा, समकालीन साहित्य, नया ज्ञानोदय, साहित्य अमृत, सर्वनाम, उन्नयन, समीक्षा, शब्द योग, वर्तमान साहित्य, साक्षात्कार

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