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Yeh Likhta Hoon

Prayag Shukla Author
Hardbound
Hindi
9788170554257
3rd
2024
74
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कवि, कथाकार और कला-आलोचक प्रयाग शुक्ल ने 1968 में छपे अपने पहले संग्रह 'कविता सम्भव' से हर मानवीय अनुभव को कविता में सम्भव करने की जिस संवेदनात्मक सामर्थ्य को प्रस्तुत किया था, वह इस सातवें कविता-संग्रह तक आते-आते एक ज़्यादा व्यापक फलक और असन्दिग्ध विश्वसनीयता प्राप्त कर चुकी है। यह लिखता हूँ अपने नाम से भी एक तरह से कविता की अन्तहीन सम्भावना और सार्थकता को प्रतिष्ठित करता दिखाई देता है।

प्रयाग शुक्ल की कविता शुरू से ही मनुष्य, जीवन, प्रकृति और मन की तमाम आवाज़ों और व्यवहारों से गहरे जुड़ी रही है और यह संलग्नता उनके हर नये संग्रह के साथ-साथ फैलती और गहरी होती रही है। वह ऐसी कविता है जो एक विकल लेकिन अविचल स्वर में 'मर्म भरा मानवीय संवाद' करना और समाज में उसकी ज़रूरत को बनाये रखना अपना उद्देश्य मानती आयी है। प्रयाग इसीलिए हमारे जीवन में अब भी बचे हुए स्पन्दनों, अच्छी स्मृतियों और नैतिक कल्पनाओं को सबसे पहले देख-पहचान लेते हैं और घोर हताशा में से एक मानवीय उम्मीद को खोज निकालते हैं। जीवन की विसंगति-विषमता, नष्ट या गायब हो रही चीज़ों की ओर भी उनकी दृष्टि उतनी ही प्रखरता से जाती है, लेकिन लौटकर वह एक वैकल्पिक, मानवीय, सुन्दर और नैतिक जीवन की खोज के लिए भी बेचैन रहती है।

कहना न होगा कि यह लिखता हूँ में प्रयाग शुक्ल की कविता के ये बुनियादी तत्त्व तो हैं ही, कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो उनकी कविता में पहली बार घटित हुई हैं। इस संग्रह में संकलित 'विधियाँ' सीरीज़ की कविताएँ एक तरफ़ उनकी कविता में एक नयी प्रयोगशीलता का संकेत देती हैं तो दूसरी तरफ़ कुछ बहुत सघन, दृश्यात्मक और आन्तरिक लय से सम्पन्न कविताएँ भी हैं जो हिन्दी कविता की निराला से शुरू हुई परम्परा से संवाद करती दिखती हैं। वर्तमान में मज़बूती से खड़े होकर समय के दो ध्रुवों से संवाद प्रयाग शुक्ल की कविता का एक नया आयाम है।

प्रयाग शुक्ल (Prayag Shukla)

प्रयाग शुक्ल कवि, कथाकार, निबन्धकार, अनुवादक, कला व फ़िल्म-समीक्षक ।28 मई, 1940 को कोलकाता में जन्म। कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातक। यह जो हरा है, इस पृष्ठ पर, सुनयना फिर यह न कहना, यानी कई वर्ष समे

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