देशान्तर - किसी कविता की पंक्ति को पढ़ते हुए किसी कहानी के अन्त पर ठिठकते हुए क्या कोई ऐसा सत्य मिलना सम्भव है जो इससे पहले हमने न पाया हो? परायी गन्ध में रची-बसी एक अच्छी विदेशी रचना में आख़िर ऐसा क्या हो सकता है जो बहुत अपना-सा लगे? क्या सचमुच जीवन का कोई ऐसा सूक्ष्म सत्य है जो हम सबके साथ एक ही तरह घटित होता है? यदि ऐसा है तो फिर चमत्कार क्या है? चमत्कार यही है— जब आप एक कविता की पंक्ति पढ़कर ठिठक जाते हैं। सन् 1960 में जब धर्मवीर भारती द्वारा अनूदित यूरोपीय व अमेरिकी कविताओं का संकलन देशान्तर प्रकाशित हुआ था, तब शायद पहली बार हिन्दी साहित्य की दिलचस्पी की एक बड़ी खिड़की बाहर की तरफ़ खुली थी। उस संकलन में यूरोप और अमेरिका (उत्तर और दक्षिण) के इक्कीस देशों— अमेरिका, अर्जेंटाइना, इक्वाडोर, इटली, इंग्लैंड, क्यूबा, क्स्टारिका, ग्रीस, चिली, जर्मनी, नीग्रो, तुर्की, म्युर्टोरिको, पेरू, फ्रांस, ब्राजील, मैक्सिको, स्पेन सोवियत रूस, वेनेजुएला व हॉलैंड— की चुनिन्दा कविताएँ थीं। यह अपनी तरह का अनूठा संकलन था। तब से अब तक विदेशी कविता में पाठकों की रुचि निरन्तर बढ़ी है। ज्ञानपीठ इस महत्त्वपूर्ण संकलन का नया संस्करण सगर्व प्रस्तुत करता है।
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