पंकज चतुर्वेदी का कवि अपने समय और समाज में बराबर हस्तक्षेप करता रहा है। इस अर्थ में वे जितने उम्दा और नीर-क्षीर विवेकी आलोचक हैं, उतने ही प्रखर कवि; जो कविता की व्याख्या नहीं, उससे संवाद करता है।.... उनकी कविता की खासियत यह है कि उसमें वे अपने आलोचक की धीर-गम्भीर और तर्काश्रयी छवि को आरोपित नहीं करते, बल्कि कविता को वाचिक अदायगी के गुणों से भरने की चेष्टा करते हैं।... उनकी कविता में इसीलिए एक आत्मीय किस्म की संवादमयता है।... केवल पीड़ा ही नहीं, प्यार की सघनता भी कवि में है।.... उनकी हर कविता एक रिलीफ की तरह सामने आती है, उबाऊ नैरेटिव के फॉर्म में नहीं।'
- ओम निश्चल
'पंकज चतुर्वेदी की कविताओं की विषय-वस्तु का कैनवस बहुत विराट् और वैविध्यपूर्ण है। वे समाज और मानव-जीवन के अँधेरे-उजले पक्षों की बहुत बारीकी से पड़ताल करते हैं और हर तरह के छद्मों को निर्ममता से बेनकाब करते हुए एक अलहदा और नितान्त निजी मुहावरे में बेहतर दुनिया के स्वप्न का स्पन्दन रचते हैं।'
- उत्पल बैनर्जी
‘पंकज की कविताओं में भोलापन है, कौतूहल है, बच्चों का-सा विस्मय है। ऋत्विक घटक के शब्दों में थोड़ा परिवर्तन करके कहें, तो उनके पात्रों ने बचपन का एक छोटा-सा टुकड़ा सदैव अपनी जेब में रखा हुआ है।.... उनकी कुछ कविताएँ व्यापक मन्तव्य के साथ भोलापन समेटे हैं।... वे मनुष्य के लिए विचारवान् होना तथा मानवीय होना, दोनों आवश्यक मानते हैं।'
- वंदना मिश्र
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