हिन्दुस्तान सबका है - उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है। सोच ग़ालिब की है लेकिन घराना मीर का है। उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है। सालहासाल अदब की शमा जलाये हुए, हज़ारों मुफ़्लिसों का बारे ग़म उठाये हुए, विचार ढलते हैं कविता में इस तरह उसके, फूल बेला के हों ज्यों ओस में नहाये हुए। 'रंग' की मस्ती है तो ठाठ सब 'नज़ीर' का है। उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है। यारबाज़ी का वो आलम कि राज ढल जाये, सुर्ख़ प्यालों में हिमाला की बर्फ़ गल जाये, हो साथ में तो बात ही निराली है, सुख़न की आँच से जज़्बात भी पिघल जाये। दिल्ली के हल्क़े में क्या दबदबा अहीर का है। उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है। नज़्म में रूपमती का फ़साना ढाल दिया, पड़ोसी मुल्क से जलता हुआ सवाल दिया, चुपके से चाँदनी बिस्तर पे आके बैठ गयी, बड़े सलीके से सिक्के-सा दिल उछाल दिया। ये करिश्मा हमारे दौर के इस पीर का है। उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है। पुरानी क़श्ती से दरिया को जिसने पार किया, सुलगते प्रश्नों पे निर्भीकता से वार किया, समाजवाद की राहों में इतने काँटे हैं, इसलिए हिन्दी की ग़ज़लों को नयी धार दिया। कोरी लफ़्फ़ाज़ी नहीं फ़ैसला ज़मीर का है। उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है। दिल्ली में रहके अमीरी के ठाट देखे हैं, बाहरी मुल्कों में जिस्मों के हाट देखे हैं, वो 'बुद्धिनाथ' हो 'नीरज' हों या कि 'निर्धन' हों, 'सोम' के साथ जाने कितने घाट देखे हैं। मगर उदय का वीतरागी मन कबीर का है। उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है। लोग कहते हैं सियासत में बेईमानी है, उसको मालूम है 'जमुना' में कितना पानी है, अक्ल से हट के जहाँ दिल की बात मानी है, वहीं जनाब की नज़्मों का रंग धानी है। ग़ौर से सुनिए ज़रा मर्सिया 'दबीर' का है उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
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