Hans Akela

Hardbound
Hindi
9789326355711
1st
2017
135
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हंस अकेला -

कवि का हिसाब उनकी हिस्सेदारी का भी उतना ही तीखा बखान होता है, जितना दूसरों की ज़िम्मेदारी और कोताही का । यह हिसाब होता है, फ़ैसला नहीं । कविता की नैतिकता ही है कि उसे देखने, बखान करने, हिस्सा लेने, सहमत - असहमत आदि होने का तो हक़ है पर फ़ैसला देने का नहीं । जो कविता फ़ैसला देने की मुद्रा में आती है अकसर खोखली और झूठी लगती है। अपने लम्बे कवि जीवन में कैलाश वाजपेयी को कविता की इस स्थिति का लगातार, कई बार कठिन और तीख़ा, कई बार उदास और निराश अहसास था । उन्होंने अपनी शुरुआत संसार में सुन्दरता और लालित्य की खोज से की थी। यह खोज जल्दी ही सच्चाई के क्रूर आघातों से डगमगा गयी। उन्हें जल्दी ही पता चल गया कि हमारी दुनिया में हिंसा, निर्दयता, क्रूरता आदि इतने व्यापक और दैनन्दिन हो गये हैं कि उन्हें नज़रअन्दाज़ करना कविता के लिए सम्भव नहीं रहा। वे एक उग्र-क्षुब्ध कवि के रूप में उभरे जिनके यहाँ 'शिला की तरह गिरी है स्वतन्त्रता ।'

कैलाश वाजपेयी ने नयी कविता के दौर में कविता + लिखना शुरू किया था और उसकी एक वृत्ति अर्थक प्रश्नवाचकता उनकी कविता में तभी से घर कर गयी। आरम्भिक गीतपरकता में वह लगभग अतः सलिल रही। लेकिन बाद में वह लगातार सक्रिय रही है। इन अन्तिम कविताओं में उस असंदिग्ध प्रश्नाकुलता भीतर और बाहर, आत्म और पर, कवि और समाज, दोनों को लेकर होती है।

कैलाश जी के दिवंगत होने के बाद उनकी अप्रकाशित कविताओं का यह संकलन पाठकों को समर्पित है।

कैलाश वाजपेयी (Kailash Vajpayee)

कैलाश वाजपेयी जन्म : 11 नवम्बर, 1936, उन्नाव निवासी । कार्यक्षेत्र : सन् 1960 में, टाइम्स ऑफ इंडिया, मुंबई में नियुक्ति 'सारिका' पत्रिका के प्रकाशन- प्रभारी। जुलाई सन् 1961 में, दिल्ली विश्वविद्यालय के शि

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