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Kisi Manushya Ka Ped Ho Jana

Paperback
Hindi
9789357756440
1st
2024
100
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किसी मनुष्य का पेड़ हो जाना -

'किसी शहर में बचे हुए जंगल उस शहर की मनुष्यता के पर्याय हैं।'

किसी मनुष्य का पेड़ हो जाना की सभी कविताओं में सुधीर आज़ाद ने जिन संवेदनाओं को उकेरा है वे मनुष्य के मनुष्य बने रहने के लिए अनिवार्य हैं।

पेड़ों का भारतीय सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक सन्दर्भ जिस तरह से यहाँ प्रस्तुत हुआ है; वह अद्भुत है।

पेड़ों को जितनी तरह देखा, सुना और कहा जा सकता है; यह सब इसमें हैं। इन कविताओं में रहनेवाली अनुभूतियाँ हमारे बहुत पास हैं और बहुत खास हैं। मैं सुधीर आज़ाद की इस बात से सहमत हूँ कि-'किसी मनुष्य में सत्य, प्रेम, परोपकार और शान्ति का भाव स्थायी हो जाना उसका पेड़ हो जाना। इसलिए किसी मनुष्य का पेड़ हो जाना उसकी मनुष्यता के विकास का चरम है।... किसी मनुष्य का पेड़ हो जाना में मैं स्पष्ट रूप से यह कहना चाहता हूँ कि प्रकृति संरक्षण का विचार हमारी जीवनशैली में समाहित होना चाहिए। हमें अपनी नयी पीढ़ी को पेड़, प्रकृति और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना होगा। संवेदनाओं के इसी सम्बन्ध से हम अपनी प्रकृति को उसके सुन्दरतम रूप में वापस ला सकेंगे ।'

काव्य-संग्रह की इन पंक्तियों में पूरी किताब सामने आ जाती है कि-

'कोई शहर कितना ज़िन्दा है

या उस शहर में कितने सभ्य

या कितने संवेदनशील लोग रहते हैं

अगर यह देखना

तो उस शहर के जंगल देखना ।

किसी शहर में

बचे हुए जंगल

उस शहर की मनुष्यता के पर्याय हैं।'

- परी जोशी

डॉ. सुधीर आज़ाद (Dr. Sudhir Aazad )

सुधीर आज़ाद नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर पीएच.डी. करने वाले डॉ. सुधीर आज़ाद एक नौजवान फ़िल्मकार, लेखक और प्रखर वक्ता होने के साथ-साथ बुनियादी तौर पर संवेदनाओं और सम्भावनाओं का समुच्चय हैं। 'नदी

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