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Bazar Mein Khada Darshanik

Hardbound
Hindi
9789362879332
1st
2024
260
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बाज़ार में खड़ा दार्शनिक - बेंजामिन बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध के लेखक हैं और आधुनिकतावाद के चरम पर खड़े हैं पर वे आज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं। पूँजीवाद के संकट से पैदा होती नयी समस्याएँ, फ़ासीवाद की शक्लें, बाज़ार, उपभोक्तावाद, मीडिया की विकराल ताक़त, संस्कृति का एक महाउद्योग में बदल जाना, टेक्नॉलाजी का अभूतपूर्व विकास और उसकी प्रायोजक शक्तियाँ, मनुष्य के मन को हरदम कृत्रिम ज़रूरतों से घेरने वाली व्यूह रचनाएँ और इसके कारण अवचेतन पर पड़ते मनोवैज्ञानिक दबाव, इतिहास के एक जटिल दौर में यथार्थ-चेतना और कला - रूपों के नये उभरते सम्बन्ध और प्रतिरोध की असीम सम्भावनाओं से भरी यह दुनिया-इन सारे सन्दर्भों में बेंजामिन को बार-बार पढ़ने की ज़रूरत है। दुनिया भर में उनको ध्यान से पढ़ा भी जाता रहा है । वे हमारे समय के कुछ मूल बिन्दुओं को उठाते हैं और मार्क्सवादी नज़रिये से आधुनिकता का एक असमाप्त एजेंडा हमारे सामने रखते हैं । इसलिए वे आज और भी प्रासंगिक हो गये हैं-ख़ासकर जब इतिहास के अन्त की घोषणाएँ कर दी गयी हैं और उत्तर-आधुनिकता का एक अजब मकड़जाल फैला हुआ है। आज एकध्रुवीय होती जाती दुनिया में पहले से ज़्यादा ख़तरनाक चुनौतियों के बीच बेंजामिन को पढ़ना प्रतिरोध के पीछे छूट गये किन्हीं सर्वथा मौलिक इलाक़ों की ओर लौटना है। यही कारण कि सामग्री-चयन में बेंजामिन के लेखन की विभिन्न शैलियों और अनेक रंगों को प्रतिनिधित्व देने का प्रयत्न किया गया है, ताकि इससे उनके विशाल रचना-संसार की एक छोटी-सी झलक हिन्दी के पाठकों को मिल सके ।

बेंजामिन को अनुवाद करना आसान नहीं है। वे आधुनिक समय के सबसे जटिल लेखकों में से हैं। उनके संसार में चीजें व सन्दर्भ आपस में उलझे हुए हैं। उनकी भाषा ग़ैर-अकादमिक और भिन्न दुनियाओं में विचरती हुई एक तनावग्रस्त विकल भाषा है । वहाँ अनुशासन टूटते हैं। वाक्य शुरू होता है और आप अतल में उतरने लगते हैं । कई बार उसका दूसरा छोर नज़र नहीं आता। वे उत्खनन करते जाते हैं । लेकिन इस कार्य को सफल अंजाम देने के लिए विजय कुमार, राजेश जोशी, राजेन्द्र शर्मा, अरुण कमल, सन्तोष चौबे, जितेन्द्र भाटिया, नरेन्द्र जैन, तापस चक्रवर्ती, अनूप सेठी, अनुराधा महेन्द्र, शशांक दुबे और अमिताभ मिश्र ने दिल से जो अनुवाद किया है, वह पाठ और प्रवाह में प्रभावशाली तो है ही, अविस्मरणीय भी है ।

सन्दर्भ की दृष्टि से अरुण कमल और विनोद दास के बेंजामिन पर जो दो अनुवाद ('यान्त्रिक युग में कलाकृतियों का पुनरुत्पादन’ और ‘वाल्टर बेंजामिन से एक बातचीत') शामिल हैं, वे इस पुस्तक के लिए एक बड़ी उपलब्धि की तरह हैं।

कहने की आवश्यकता नहीं कि बेंजामिन पर यह पुस्तक आज के विकट समय में बहुत सारे सवालों को सुलझाने की दृष्टि से पाठकों के साथ-साथ अध्येताओं के लिए भी महत्त्वपूर्ण और उपयोगी साबित होगी।

ज्ञानरंजन (Gyanranjan)

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कमला प्रसाद (Kamla Prasad)

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