Hali Kavi Ek Roop Anek

Hardbound
Hindi
9789350001981
1st
2010
270
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मौलाना अलताफ़ हुसैन हाली यों तो पैदा हुए उन्नीसवीं सदी के मध्य में, लेकिन वे आदमी थे इक्कीसवीं सदी के ! जो आदमी अपने समय से डेढ़-दो सौ साल आगे की सोचता हो, उसे आप क्या कहेंगे? क्या ऋषि नहीं? क्या स्वप्नदर्शी नहीं? क्या मौलिक विचारक नहीं? क्या क्रान्तिकारी नहीं? क्या प्रगतिशील नहीं? हाली ये सब कुछ थे। इसीलिए डॉ. एस. वाई. कुरैशी ने इस पुस्तक का नाम दिया है, 'कवि एक रूप अनेक'! हाली यों तो खुद मौलाना थे, लेकिन उन्होंने अपने गद्य में पोंगापंथी मौलानाओं और मौलवियों की जो खबर ली है, वह वैसी ही है, जैसी कभी कबीर ने ली थी। हाली के समकालीन महर्षि दयानन्द सरस्वती ने जैसे हिन्दू पोंगापंथियों को ललकारा था, लगभग वैसे ही हाली ने भी इस्लामी कट्टरवादियों को खुली चुनौती दी थी।

डॉ. कुरैशी की इस किताब की खूबी यह है कि हाली पर खुद उन्होंने एक लम्बा और विश्लेषणात्मक निबन्ध तो लिखा ही है, उस क्रान्तिकारी और महान शायर पर ऐसे विविध निबन्धों का संकलन किया है, जो उनके हर पहलू पर प्रकाश डालते हैं। इस पुस्तक को पढ़ने से पता चलता है कि मौलाना हाली कितने बड़े राष्ट्रवादी थे, निर्भीक और क्रान्तिकारी विचारक थे, उत्कृष्ट कोटि के शायर थे और अपने समय के सबसे ऊँचे समालोचक भी थे।

डॉ. क़ुरैशी ने हाली की जीवनी तो नहीं लिखी है, लेकिन उन्होंने हाली के लिए करीब-करीब वही काम कर दिखाया है जो खुद हाली ने सादी, ग़ालिब और सर सैयद अहमद के लिए किया था। यह संकलन इतना उम्दा है कि इसे पढ़ने पर साहित्य का रसास्वादन तो होता ही है, बेहतर इनसान बनने की प्रेरणा भी मिलती है। हाली थे ही ऐसे ग़ज़ब के आदमी।

- वेदप्रताप वैदिक

܀܀܀

इक नई राह तलबगारे अदब की ख़ातिर इक नया मोड़ तफ़क्कुर के लिए फ़न के लिए इक नया ज़ेहन तजल्ली वतन की ख़ातिर इक नये प्यार की लय शैख़-ओ-बिरहमन के लिए जिसने आवाज़-ए-तग़ज़्ज़ुल को सदाक़त बख़शी जिसने अलफ़ाज़ को इज़हार की सच्चाई दी वक़्त के पैकर-ए-ख़्वाबीदा-व-ख़्वाब आगीं को इक नये दौर के एहसास की अंगड़ाई दी कितने अनफ़ास-ए-मसीहा की गिरा कर शबनम वक़्त के चेहर-ए- बीमार को शादाब किया अपने जज़बात-ए-मोहब्बत के बहा कर चश्मे क़ौम को सेर किया मुल्क को सेराब किया नसर वो नसर जो अक़वाम के दिल धड़का दे नज़म वो नज़म जो इनसान को बेदार करे वह हदी ख्वाँ कि जो इक आबलह पा मिल्लत को जादह पयमा ही नहीं क़ाफिला सालार करे शाएर ज़िन्दा-व-पाइनदा की जादू सुख़नी ज़ेहन में दौड़ गई लहर सी आज़ादी की कोहे जुलमात से इक जू-ऐ सहर फूट पड़ी दिले दीवान-ए-हाली ने वह फ़रहादी की

- पुस्तक से

डॉ. एस. वाय. क़ुरैशी (Dr. S.Y. Quraishi)

डॉ. एस. वाई. कुरैशी भारत के निर्वाचन आयुक्त डॉ. एस. वाई. कुरैशी का जीवन और कैरियर विविधरंगी रहा है। उन्होंने भारत में केन्द्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर उल्लेखनीय कार्य करते हुए 35 वर्ष तक सिविल

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