Katha Prasang Yatha Prasang

Nirmala Jain Author
Hardbound
Hindi
9788170557500
1st
2000
136
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कथा प्रसंग यथा प्रसंग -
कथा-साहित्य पर समय-समय पर रचित इस संकलन के लेखों की शुरुआत कथा-समीक्षा की दुश्वारियों के ज़िक्र से होती है। हिन्दी में काव्य-समीक्षा की पद्धतियाँ तो कुछ दूर तक बनी-बिगड़ीं, लेकिन कथा-समीक्षा की कोई सैद्धान्तिकी या निश्चित परिपाटी नहीं बन सकी। पुस्तक-समीक्षाओं के रूप में पत्र-पत्रिकाओं में कुछ लेखों, कुछ बहसों के माध्यम से जो सिलसिला शुरू हुआ था, उसने आगे चलकर 'अधूरे साक्षात्कारों' में ही प्रौढ़ता पायी। पर समीक्षकों और स्वयं रचनाकारों ने भी इस दिशा में जो प्रयास किए उनमें अपने प्रतिमान ख़ुद ही बनाये। कारण था कथा-साहित्य का वैविध्य और विस्तार।
प्रस्तुत संकलन के लेखों में भी किसी पूर्वनियत सैद्धान्तिकी या तत्वधर्मी पद्धति का सहारा न लेकर कृति को केवल 'पाठ' की तरह ग्रहण किया गया है। हर समीक्षा की मूल दृष्टि का नियमन-संचालन कृति की अन्तर्वस्तु और उसके शिल्प से हुआ है। इसीलिए हर लेख दूसरे से भिन्न है-उस बिन्दु की तलाश की दृष्टि से भी जहाँ से कृति में प्रवेश किया जा सके। पाठक इसी वैविध्य के बीच इन लेखों के पाठक से सहमत-असहमत होते हुए कुछ नये और अनछुए पक्षों की तलाश करके इस सिलसिले को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रेरित होंगे।

निर्मला जैन (Nirmala Jain)

डॉ. निर्मला जैन - जन्म : दिल्ली, 1932।शिक्षा : एम. ए., पीएच.डी., डी.लिट्., दिल्ली विश्वविद्यालय।अध्यापन : 1956 से 1970, स्थानीय लेडी श्रीराम कालेज में हिन्दी विभागाध्यक्ष।1970-81, दिल्ली विश्वविद्यालय, ( दक्षिण प

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