आधुनिक युग में मनुष्य तार्किक बन गया। वह पहले जैसा कोरा विश्वासी नहीं, शंकाकुल है। वह प्रश्न करता है, इसलिए प्रश्न करता है कि वह बौद्धिक बन गया है। वह कार्य-कारण सहित ही किसी बात को, किसी तथ्य को स्वीकारता है। विल डूरण्ड ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'स्टोरी ऑफ सिविलाइज़ेशन' में कहा कि मनुष्य के विकास की तीन सीढ़ियाँ हैं-मंत्र युग (Age of magic). धर्म युग (Age of Religion) और बुद्धि युग (Age of Reason ) । आधुनिक मनुष्य बुद्धि युग का है इसलिए उसकी संवेदना भी बौद्धिक है। अतः आधुनिक मनुष्य एक ऐसे कगार पर खड़ा हुआ है कि वह किसी निर्णय पर पहुँचने में असमर्थ है। यह असमर्थता इसलिए है कि इसमें निरन्तर एक संघर्ष चलता रहता है। क्योंकि उसके भीतर अब भी एक विश्वासी मनुष्य बैठा हुआ है जो पूर्ण रूप से अपनी जड़ों को उखाड़ फेंकने में असमर्थ है। पर बाहर वह आधुनिक है उसके विश्वासों की सारी जड़ें टूट चुकी हैं। इसलिए वह एक गहरे आत्म संघर्ष का शिकार बन गया है। इस आधुनिक मनुष्य की संवेदना है आधुनिकता । आधुनिकता एक मानसिकता है जिसमें प्रश्न चिह्नों की निरन्तरता है। प्रश्न चिह्न उनके तार्किक होने का परिणाम है अतः आधुनिकता आधुनिक मनुष्य में ही निहित जड़ विहीन आधुनिक मनुष्य तथा जड़ोंवाले पुराने मनुष्य के बीच का संघर्ष है।
'नयी समीक्षा' का प्रभाव तारसप्तक के कवियों से लेकर बहुत समय तक बना रहा। रूपवाद के लगभग समान्तर संरचनावाद भी विकास प्राप्त करता रहा। भाषा को चिह्नों की निर्मिति माना है सॉस्यूर ने सॉस्यूर का चिह्नविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो समाज के भीतर चिह्नों के जीवन का अध्ययन करता है। दुनिया का ज्ञान भाषा के भीतर से आता है। भाषा के बिना ज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश करना सम्भव ही नहीं। सॉस्यूर ने कहा कि शब्द- अर्थ की परस्परता मनमाना अथवा नियमरहित होती है। इसी तत्त्व को संरचनावाद ने ग्रहण किया। लेवीस्ट्रॉस ने सॉस्यूर के इस संरचनावाद को आगे बढ़ाया और संरचनात्मक विज्ञान की अवधारणा विकसित की।
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