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Kavita Aur Samay

Arun Kamal Author
Hardbound
Hindi
9788170556404
2nd
2014
236
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₹495.00

कविता और समय -
सुपरिचित कवि अरुण कमल की इस पहली आलोचना-पुस्तक में पिछले सत्रह-अट्ठारह वर्षों के दौरान लिखित उनके कुछ निबन्ध एवं टिप्पणियाँ संकलित हैं। पहले खण्ड में कुछ महत्त्वपूर्ण लेखकों पर स्वतन्त्र निबन्ध हैं, उनकी पुस्तकों की समीक्षा एवं रचनाओं के विवेचन। ये लेखक हैं-निराला, शमशेर, नागार्जुन, त्रिलोचन, फैज़, हरिशंकर परसाई, विजयदान देथा, रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा, मलयज, केदारनाथ सिंह, परमानन्द श्रीवास्तव और डॉ. नामवर सिंह। दूसरे खंड में साहित्य, विशेषकर कविता, के विभिन्न पक्षों एवं प्रश्नों पर टिप्पणियाँ तथा वक्तव्य हैं। कुछ प्रश्नोत्तर भी हैं जिनमें एक तुलसीदास से सम्बन्धित है। इस तरह बिना किसी पूर्वनिर्धारित योजना के यह आलोचना पुस्तक अपनी परम्परा को पहचानने और श्रेष्ठ रचना को चिन्हित करने का प्रयास करती है। अपने समय के विवादों में भाग लेने तथा अधिक से अधिक प्रश्नों पर विचार करने की आकुलता भी यहाँ मिलती है। अपनी सहज अन्तर्दृष्टि का उपयोग करते हुए लेखक ने मुख्यतः पाठ-केन्द्रित आलोचना की है। मूल्य-निर्धारण से अधिक यह मूल्यवान की खोज का प्रयत्न है।
अरुण कमल की इस पुस्तक को पढ़ते हुए समकालीन काव्य-परिदृश्य भी आलोकित होता चलता है। समकालीन कवियों पर एक भी निबन्ध न होते हुए भी हिन्दी की पिछले बीस वर्षों की कविता के सम्बन्ध में परोक्ष रूप से यहाँ अनेक सूत्र मिलते हैं। यह सही है कि लेखक की स्थापनाएँ कई बार अतिरंजित लगती हैं, कई बार उनकी दृष्टि एकांगी भी लग सकती है, इसके बावजूद अरुण कमल अभी उन थोड़े से कवियों में हैं जिन्होंने अपने समय, समाज और साहित्य के सवालों पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया है। किसी भी सुधी पाठक के लिए यह पुस्तक अनिवार्य है।
एक ख़ास बात यह कि इन निबन्धों के गद्य का अपना स्वाद है। इतना स्वच्छ, साफ़, चमकता हुआ जल-जैसा गद्य बहुत कम देखने में आता है। जो अरुण कमल की आलोचना से असहमत होते हैं वे भी उनके गद्य से सहमत।

अरुण कमल (Arun Kamal)

15 फरवरी, 1954, नासरीगंज, रोहतास (बिहार) में जन्म। छह कविता पुस्तकें अपनी केवल धार, सबूत, नये इलाके में, पुतली में संसार, मैं वो शंख महाशंख और योगफल। तीन कविता चयन भी प्रकाशित। दो आलोचना पुस्तकें कवि

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