प्रस्तुत पुस्तक में सन 1800 से लेकर 1900 तक के कालखंड पर विचार करनेके तारतम्य में शुक्ल जी द्वरा 1843 ई. से आधुनिक काल की शुरुआत माने जाने वाले तर्क के अनौचित्य पर प्रकाश डालते हुए इसे तनिक पीछे खिसकाकर 1800 ई. को आधुनिक काल का प्रस्थान बिन्दु मानने की स्वीकारोक्ति को पर्याप्त तर्क के साथ प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ-साथ इस पुस्तक में और भी कई नये तथ्यों का अन्वेषण कर उसे उजागर करने की कोशिश की गयी है।
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