Kahani Ke Naye Pratiman

Kumar Krishna Author
Hardbound
Hindi
9788181433527
3rd
2018
156
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जब-जब रचनाकार आत्मचिन्तन, आत्मविश्लेषण अथवा आत्मसाक्षात्कार करता है, मुझे लगता है तब-तब उसके भीतर आलोचना की कोंपलें फूटती हैं। 'ग्यारह वर्ष का समय' का कहानीकार ही 'चिन्तामणि' की रचना कर सका तथा 'बाणभट्ट की आत्मकथा' के लेखक ने कबीर को हिन्दी साहित्य में प्रतिष्ठा दिलाई। फिर चाहे 'तार सप्तक' से यात्रा प्रारम्भ करने वाला आलोचक रामविलास शर्मा हो या 'नयी कविता' का कवि नामवर सिंह । सभी मूलतः रचनाकार रहे. हैं। अतः यहाँ प्रस्तुत मेरी चिन्ताएँ भी एक रचनाकार की मीमांसा हैं।

हमारे आस-पास जो सच है उसे शब्दों में रूपान्तरित करने का नाम कविता है लेकिन अपने आस-पास के झूठ को सच में बदलने की बेमिसाल तरकीब का नाम कहानी है। दूसरे शब्दों में हम यों भी कह सकते हैं कि मिथ्या को तथ्य बनाकर उपस्थित करने का कलात्मक उपकरण कथा है। निश्चित रूप से इससे कहानी की विराट सामाजिक शक्ति का पता चलता है और इस दृष्टि से देखें तो कहानी साहित्य की दूसरे दर्जे की विधा हरगिज नहीं रह जाती।

कुमार कृष्ण (Kumar Krishna)

कुमार कृष्ण  कुमार कृष्ण का जन्म हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के गाँव नागड़ी में 30 जून 1951 को एक ब्राह्मण किसान-परिवार में हुआ। आजकल आप हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के हिन्दी-विभाग में प्रोफेसर

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