उपन्यासकार प्रेमचंद एवं गोर्की -
इस तुलनात्मक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए विषय की उपादेयता के पक्ष में महान चीनी लेखक श्री श्येनमिन के कुछ वाक्यों को उद्धृत करना चाहेंगे, "चीनी जनता तमाम आधुनिक भारतीय लेखकों में से कई से सुपरिचित है और वे उसके सबसे पसन्दीदा भी हैं। प्रेमचन्द उनमें से एक हैं। उन्होंने आजीवन औपनिवेशिक शासन और देश की पिछड़ी सामन्ती व्यवस्था का विरोध किया। वे सोवियत संघ की अक्टूबर क्रान्ति से भी प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी रचनाओं में 'जोतने वाले को खेत' का प्रगतिशील विचार अभिव्यक्त किया है। वे भारत के लू शुन या भारत के गोर्की कहलाते हैं।"
प्रेमचन्द एक महापुरुष थे। जीवन पर्यन्त वे कठिनाइयों से जूझते रहे। अध-जली बीड़ी कान पर रख कर लिखते रहे, किन्तु उन्होंने बेज़ुबानों को ज़बान दी। नेत्रहीनों को नयन दिये और किसान-मज़दूरों के बेताज बादशाह बने रहे। प्रेमचन्द ने पहली बार कथा को जीवन की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।
गोर्की भारत के प्राचीन-साहित्य और संस्कृति से भली-भाँति परिचित थे। मानव जाति के इतिहास के विषय में उन्होंने लिखा है कि मानव जाति का इतिहास यूनान और रोम से नहीं, भारत और चीन से आरम्भ करना चाहिए। जब विश्व-साहित्य के प्रकाशन की योजना शुरू हुई तो गोर्की ने उसमें रामायण, महाभारत और पंचतन्त्र को भी सम्मिलित किया। उनके अपने निजी पुस्तकालय में रामायण, प्राचीन दन्त कथाएँ, हठयोग, गाँधी जी की जीवनी और रवीन्द्रनाथ के उपन्यास मौजूद थे। इन सब बातों से प्रेमचंद्र और गोर्की के तुलनात्मक अध्ययन के महत्त्व को समझा जा सकता है। -(इसी पुस्तक से)
अन्तिम आवरण पृष्ठ -
ये दोनों महान लेखक उपन्यास के क्षेत्र में आगे हैं या कहानीकार के रूप में यह कहना कठिन है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये दोनों लेखक उपन्यासकार एवं कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं, किन्तु इन्होंने नाटक और निबन्ध भी लिखे हैं। गोर्की ने कुल 6 नाटक लिखे। इनमें अधिकांश क्रान्ति के पूर्व लिखे गये चूँकि हम विषय की सीमा में बँधे हुए हैं तथापि उनके कथा-साहित्य की चर्चा करते हुए भी मुख्यतः उनके उपन्यासों को आधार बनाकर ही बातें करेंगे। यहाँ एक बात की चर्चा कर देना समीचीन प्रतीत होता है कि इन दोनों महान विभूतियों के उपन्यासों की चर्चा काफ़ी हो चुकी है। वैसे हमारी समझ है कि इन दोनों के उपन्यासों का तुलनात्मक अध्ययन करने की अब तक कोशिश कम ही हुई है।...
यहाँ एक बात स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि आम लोग कथा-साहित्य का अर्थ उपन्यास एवं कहानी दोनों से लगाते हैं। किन्तु आजकल कथाकार कहानीकार का पर्यायवाची और कथा-साहित्य कहानियों का पर्यायवाची बन चुका है और हमने जब अपनी पहली पुस्तक के नामकरण का प्रस्ताव 'प्रेमचंद एवं गोर्की के कथा-साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन' किया तो मेरा अभिप्राय दोनों की कहानियों से ही था क्योंकि इनकी चर्चा कम हुई है।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review