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आधुनिक कवि विमर्श

आलोचना
Hardbound
Hindi
9789326352963
1st
2015
323
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आधुनिक कवि विमर्श - 'डॉ. धनंजय वर्मा ने आधुनिकता को एक व्यापक सन्दर्भ में देखा-परखा है और विश्व साहित्य पर उनको दृष्टि रही है। उन्हें भारतीय सामाजिक परिवेश का भी ध्यान है। इसीलिए आधुनिकता सम्बन्धी उनका विवेचन किन्हीं आयातित सिद्धान्तों पर आधारित न होकर उनकी अपनी समझ बूझ से उपजा है। आधुनिकता के सन्दर्भ में धनंजय ने जिस रचनाशीलता पर विचार किया है उससे उन्होंने अन्तरंग साक्षात्कार किया है और हम सब आश्वस्त हैं कि उनका यह अध्ययन आधुनिकता के विषय में प्रचलित कई भ्रान्तियों को तोड़ेगा और हमें चीज़ों को सही सन्दर्भ में देखने की समझ देगा।'—डॉ. प्रेमशंकर, सागर लेखक ने अपनी मौलिक दृष्टि से आधुनिकता, आधुनिकीकरण, समकालीनता, परम्परा आदि प्रत्ययों और विषयों में अभूतपूर्व विवेचन किया है। लेखक के चिन्तन, विषय के प्रति एप्रोच और विश्लेषण में अभूतपूर्वता है। आधुनिकता के प्रत्यय के सन्दर्भ में लोक से हटकर अपना विशिष्ट सोच-विचार प्रस्तुत किया है। इससे लेखकों, आलोचकों के मस्तिष्क में बने-बनाये ढाँचे टूटेंगे और आधुनिकता, समसामयिकता आदि के विषय में पुनर्विचार करना होगा। लेखक में उच्चकोटि की आलोचनात्मक क्षमता है और आद्योपान्त अपने दृष्टिकोण को अध्ययन और तर्कों से पुष्ट करने का प्रातिभ ज्ञान है।—डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय आलोचक ने हिन्दी के स्वच्छन्दतावादी कवियों को ग़ैर-आधुनिक सिद्ध करने के आलोचकीय भ्रमों का तार्किक समाधान किया है। मुझे नहीं लगता कि आधुनिकता में अन्तर्निहित विविध प्रवृत्तियों—धाराओं के बारे में इतनी समग्र पड़ताल हिन्दी में और कहीं उपलब्ध है इस पड़ताल का क्षितिज निश्चय ही देशज से लेकर वैश्विक है।—डॉ. कमला प्रसाद इन पुस्तकों (आधुनिकता के बारे में तीन अध्याय, आधुनिकता के प्रतिरूप और समावेशी आधुनिकता) की विशेषता यही है कि ये शोध प्रबन्धों की जड़ता से ग्रस्त नहीं है। मौलिक समीक्षा की विचारशीलता और गम्भीरता इनमें आद्यन्त उपलब्ध है। कविता केन्द्रित आधुनिकता सम्बन्धी अध्ययन होने से धनंजय वर्मा ने अपनी पुस्तक-त्रयी में छायावाद से लेकर अज्ञेय और भारती (नागार्जुन और सुमन, मुक्तिबोध और शमशेर) तक की हिन्दी कविता को विश्लेषण का विषय बनाया है। एक तरह से यह आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास विश्लेषण भी है। धनंजय वर्मा की समावेशी आधुनिकता सम्बन्धी अवधारणा एवं कविता के विश्लेषण के कारक तत्त्व दरअसल भविष्य के समीक्षकों के लिए विचारशील पीठिका तैयार करते हैं। उनकी अवधारणा में देशज आधुनिकता के बीज तत्त्व बिखरे पड़े है।—डॉ. ए. अरविन्दाक्षन यह विवेचन इतना सन्दर्भसम्पन्न और आलोचना प्रगल्भ है कि लगता है जैसे हम काव्य-आलोचना के साथ-साथ आधुनिक कविता के सन्दर्भ ग्रन्थ से या लघु एनसायक्लोपीडिया से साक्षात्कार कर रहे है। धनंजय की इस पुस्तक का यदि ठीक से नोटिस हिन्दी आलोचना और हिन्दी के साहित्यिक एवं भाषिक विकास की दृष्टि से लिया जाता तो एक बड़ा विमर्श आधुनिकता को लेकर हो सकता था।—डॉ. रमेश दवे आधुनिकता के अबतक के विकास और उसके छद्म तथा वास्तविक, अप्रासंगिक और प्रासंगिक, अप्रामाणिक और प्रामाणिक रूपों के बीच एक स्पष्ट विभाजक रेखा खींचने की कोशिश की गयी है। धनंजय वर्मा आधुनिकता के समग्र वैचारिक चिन्तन से टकराते है।...धनंजय वर्मा पश्चिमी सन्दर्भों में और उनसे हटकर आधुनिकता के स्वरूप को स्पष्ट करने की कोशिश करते हैं और आधुनिकीकरण पर विचार करने के लिए धनंजय वर्मा ने भारतीय सन्दर्भ और हिन्दी चिन्तन को आधार बनाया है।—डॉ. परमानन्द श्रीवास्तव

धनंजय वर्मा (Dhananjay Verma)

प्रो. धनंजय वर्मा - जन्म: 14 जुलाई, 1935। ग्राम : छातेर, तहसील : उदयपुरा। शिक्षा: जगद्लपुर, रायपुर और सागर में। आजीविका: छत्तीसगढ़ महाविद्यालय, रायपुर, जगद्लपुर, भोपाल, खण्डवा, नरसिंहपुर, बरेली के महा

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