मैनेजर पाण्डेय की तारीख़-ए-पैदाइश के मौके पर -
सितम्बर की पहली तारीख 23 सितम्बर के साथ आ गयी थी अभी तो एक साल भी पूरा नहीं हुआ था। जो दिन बाकी रह गये वे तारीख-ए-पैदाइश के हैं या तारीख-ए-वफात के, ये ना तारीख-ए-पैदाइश के हैं ना तारीख़-ए-वफात के यह उन लोगों के हैं जिन्हें मैनेजर पाण्डेय के इल्म और एहसास का शदीद एहसास है, एक किताब को तरतीब देते हुए, इन बचे हुए दिनों के तेज़तर गुज़र जाने का डर सताता है, किताब के मुकम्मल हो जाने का ख़याल भी डराता है, कुछ पन्ने किताब से बाहर रह जायें तो किताब की उम्र बढ़ जाती है। आज की शाम मैनेजर पाण्डेय के साथ गुज़रती थी शमीम हनफ़ी का कॉल आ ही जाता था कि पाण्डेय जी को जन्मदिन की मुबारकबाद देना । कभी चलूँगा तुम्हारे साथ, फिर हुआ यूँ कि एक दिन मैनेजर पाण्डेय शमीम हनफ़ी साहब के घर आ गये, वह दिन मुक्तिबोध की तारीख़-ए-पैदाइश का था एक सादा-सा बिस्किट और एक प्याली चाय कितनी खूबसूरत, लज़ीज़ और ज़िन्दगी से भरपूर मालूम होती थी। एक रास्ता बायीं तरफ़ को जेएनयू जाता है, और दूसरा रास्ता सीधा पाण्डेय जी के घर की तरफ़ जो आगे जाकर बायें तरफ़ को मुड़ जाता है और फिर एक रास्ता मुसाफ़िर को उनके घर तक ले जाता हैं, उनके इल्म की गहराई और इज़हार की सतह तक । जो साफ़, सादा और उजला था यह एहसास तो इन रास्तों को भी रहा होगा इसी बीच कोई फ़ोन आ जाता बनी हुई चाय थोड़ी ठण्डी हो जाती पाइप का धुआँ उनकी बातों और विचारों के साथ किसी और आलम का पता देने लगता । आज की तारीख उनके रुखसत होने के बाद पहली बार आयी है और कुछ इस तरह आयी कि जैसे वह गयीं ही नहीं थी। शाम अब गहरी होने लगी है वक्त निकलता जा रहा है जो चाय और सादे से बिस्किट का था
इस रुखसत होते हुए वक़्त में इतना कुछ छुपा है कि वक्त के गुज़रने का एहसास कचोटने भी लगता है। 23 सितम्बर की तारीख़ फिर आयेगी। एक तारीख और नज़दीक आ रही है। गुज़रती हुई तारीख आने वाली तारीख तो नहीं हो सकती आज की शाम आने वाली और शामों के बारे में कुछ कहती है। शब्द और कर्म, शब्द और साधना तक आ गये हैं।
- प्रो. सरवरुल हुदा
23 सितम्बर, 2023
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