Aadhunik Bharatiya Chitrakala Ki Rachnatmak Ananyata

Ranjit Saha Author
Hardbound
Hindi
9789355182562
1st
2022
412
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आधुनिक भारतीय चित्राकला की रचनात्मक अनन्यता -
आधुनिक भारतीय कला-परिदृश्य को बहुधा भारतीय पुनर्जागरण या प्रबोधन के सन्दर्भ में पारिभाषित किया जाता रहा है। आशय स्पष्ट है अन्यथा या आरोपित बन्धनों, पूर्वरूढ़ियों, अन्ध रीतियों से मुक्ति और व्यक्ति-सत्ता की प्रतिष्ठा।
बीसवीं सदी के आगमन के साथ, आधुनिक भारतीय कला-दृष्टि सम्पन्न, सजग और संघर्षरत कला सर्जक विषय-वस्तु, माध्यम, उपकरण आदि के साथ अपनी भूमिका को सार्थक करने में जुट गये। रवि वर्मा (1848-1906) के बाद, आधुनिकता के संस्पर्श से कला-सृजन के क्षेत्रा में गुणात्मक परिवर्तन आया, जिसे अवनीन्द्रनाथ ठाकुर, नन्दलाल बसु, रवीन्द्रनाथ, अमृता शेरगिल, जामिनी राय और उन परवर्ती चित्राकारों में लक्ष्य किया जा सकता है, जिन्होंने प्राच्य और पाश्चात्य कलादर्शों से अलग हटकर, अपनी राह अन्वेषित की और रचनात्मक पहचान स्थापित की। विभिन्न कलान्दोलनों और चित्राण शैली से गुज़रती हुई, भारतीय कला ने बीसवीं सदी के चालीस-पचास दशक तक अपना एक मुकषम तय कर लिया था। इन कलाकारों की रचनात्मक अनन्यता इस अर्थ में भी महत्त्वपूर्ण है कि सार्वदेशिक, सार्वकालिक और सार्वजनीन होने का कोई दावा न करते हुए, इन्होंने अपनी कृतियों या निर्मितियों को ही ‘स्व’ का विस्तार माना। पाश्चात्य कलान्दोलनों और प्राच्य कला पद्धतियों से सम्बद्ध- असम्बद्ध चित्राकारोंµयथा, सूज़ा, रज़ा, हुसेन, कृशन खन्ना, गायतोंडे, रामकुमार, अकबर पदमसी, तैयब मेहता, परितोष सेन, गणेश पाइन, लालू प्रसाद शॉ, विकास भट्टाचार्य, अंजली इला मेनन, अर्पिता सिंह, यूसुफ़ अरक्कल, जय झरोटियाµइन सबकी कलात्मक अनन्यता का समुचित आकलन एवं विश्लेषण हिन्दी के सुपरिचित लेखक, आलोचक और कला-चिन्तक डॉ. रणजीत साहा ने अत्यन्त श्रमपूर्वक किया है।
कला-प्रेमियों और कला-अध्येताओं को, सम्बन्धित कलाकारों द्वारा उकेरे गये चित्रों से सुसज्जित प्रस्तुत कृति पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी जान पड़ेगी।

रणजीत साहा (Ranjit Saha)

डॉ. रणजीत साहाहिन्दी के सुपरिचित विद्वान डॉ. रणजीत साहा (जन्म : 21 जुलाई, 1946), हिन्दी में एम.ए. ( प्रथम श्रेणी), विश्वभारती, शान्तिनिकेतन से पीएच.डी. तथा तुलनात्मक साहित्य एवं ललित कला अधिकाय में भी उ

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