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कहानी का लोकतन्त्र और अप्रकाशित रचनाएँ

आलोचना
Paperback
Hindi
9789357755580
1st
2024
228
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कहानी भी आख़िर एक 'सृष्टि' है जिसके मूल में 'सृजन' की प्रवृत्ति प्रमुख है। इसलिए कहानी का मूल्यांकन प्रथमतः 'सृष्टि' के रूप में होना चाहिए। इसके लिए यह स्वीकार करना आवश्यक है कि सृजनशीलता बुनियादी मूल्य है। इस दृष्टि से सबसे मूल्यवान कहानी वह है, जो सबसे अधिक सृजनात्मक है। सृजनशीलता ही किसी कहानी को नयी कहानी बनाती है। इसलिए आज नयी कहानी की माँग का अर्थ है कहानी में नये सृजन की माँग है।

यदि यह भी एक 'प्लैटीट्यूड' है तो इसलिए इस पर आज ज़ोर देने की और भी ज़रूरत है। कथनी और करनी में अन्तर आने पर ही कोई कथन 'प्लैटीट्यूड' प्रतीत होता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आज साहित्य में सृजनशीलता का अभाव है। जहाँ रचनात्मक साहित्य ही इतना सृजनहीन हो वहाँ भी सृजनात्मक आलोचना की क्या आशा की जा सकती है? कहानी के क्षेत्र में घिसे-पिटे आलोचनात्मक मूल्यों का व्यवहार वस्तुतः रचनात्मक साहित्य की सृजनहीनता का विकृत आईना है।

विजय प्रकाश सिंह (Vijay Prakash Singh)

विजय प्रकाश सिंह 1 नवम्बर, 1949 को बनारस के जीयनपुर गाँव में जन्म। हाईस्कूल तक की पढ़ाई जीयनपुर के पास शहीद गाँव से। बी.एससी. उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी से और एम.टेक. इंजीनियरिंग मास्को से। एयर इंड

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अंकित नरवाल (Ankit Narwal)

अंकित नरवाल 6 अगस्त, 1990 को जन्म । पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से एम.ए. और पीएच.डी. (हिन्दी) । चार पुस्तकें-अठारह उपन्यास : अठारह प्रश्न, हिन्दी कहानी का समकाल, यू. आर. अनन्तमूर्ति : प्रतिरोध का विकल

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डॉ. नामवर सिंह (Dr. Namvar Singh )

नामवर सिंह 

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