Swatantrayottara Hindi Kavita Mein Pranaya Chitran

Hardbound
Hindi
9788170556114
1st
1998
160
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हर युग में, हर समाज में वासना की, काम की उद्दाम अभिव्यक्ति पर नीतिनियमों ने, धार्मिक परम्पराओं ने, आर्थिक तथा सामाजिक परिस्थितियों ने जिद्दी पहरेदार की नज़र रखी है और काम- वासनाएँ हैं कि जो किसी भी स्थिति में संयम रखना नहीं जानतीं। इस कशमकश से मनुष्य को बचाने के हेतु प्रकृति ने कुछ सुरक्षा कवच भी उसे सौंपे हैं। स्वप्न ऐसा ही एक सुन्दर सुरक्षा कवच है। कला और साहित्य निर्मिति का कार्य भी इसी प्रकार का कवच कुण्डल है। कामवासना के आवेग और समाज के बन्धनों में अटका हुआ, दुर्बल व्यक्ति जहाँ विकृति का शिकार बनता है वहाँ कलाकार, कवि, साहित्यिक रचना निर्मिति में इन विकृतियों को.....बहाता चला जाता है।

कविता का मूल स्वभाव और प्रेम की प्रकृति देखने के उपरान्त दोनों में गजब का साम्य दृष्टिगोचर होता है। एक क्षण ऐसा आता है कि प्रेम अतींद्रिय अनुभूतियों की चाह सँजोने लगता है। मन की इन तरल अनुभूतियों को हूबहू पकड़ने की और साकार करने की क्षमता कविता जैसा तरल माध्यम छोड़कर और किसमें प्राप्त होगी?

सफल कला एवं साहित्य संवेदनशील क्षणों की उत्स्फूर्त अभिव्यक्ति होती है। हाँ, सभ्यता और संस्कृति के विकास के फलस्वरूप इन सहजात प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति में उसने परिवर्तन एवं परिवर्धन अवश्य ही किया। बीसवीं शती तो विश्व के सभी देशों के लिए आश्चर्यपरक परिवर्तन लानेवाली जादुई शती सिद्ध हुई। स्वातंत्र्योत्तर काल तो भारतीय मानस के लिए खास कर साहित्यिक मानस के लिए चुनीतियों से भरा हुआ काल बनके उपस्थित हुआ। पाश्चात्य प्रभाव, बदलती परिस्थितियाँ, परिवर्तित परिवेश, टूटते-बनते जीवन मूल्य, कलात्मक मूल्य और बाढ़ में फंसी मानसिकता इनकी चकाचौंध में जीवन को प्रेरणा देनेवाला समाज-जीवन ही अत्यधिक मात्रा में झुलस गया, आहत हुआ। स्वातंत्र्योत्तर प्रणय कविता इसका जीवित दस्तावेज़ है।

पद्मजा घोरपड़े (Padmaja Ghorpade )

एसोसिएट प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं भूतपूर्व प्रभारी प्राचार्य, स.प. महाविद्यालय, पुणे।प्रकाशित पुस्तकें : कुल 38; समीक्षा, कविता, कहानी, पत्रकारिता, जीवनी तथा अनुवाद लेखन हेतु राष्ट्र

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