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Deewar Mien Ek Khirkee Rahati Thi

Hardbound
Hindi
9788170555414
4th
2018
170
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"ऐसे नीरस किंतु सरस जीवन की कहानी कैसी होगी? कैसी होगी वह कहानी जिसके पात्र शिकायत करना नहीं जानते, हाँ! जीवन जीना अवश्य जानते हैं, प्रेम करना अवश्य जानते हैं, और जानते हैं सपने देखना। सपने शिकायतों का अच्छा विकल्प हैं। यह भी हो सकता है कि सपने देखने वालों के पास और कोई विकल्प ही न हो। यह भी हो सकता है कि शिकायत करने वाले यह जानते ही ना हों कि उन्हें शिकायत कैसे करनी चाहिये। या तो यह भी हो सकता है कि शिकायत करने वाले यह मानते ही न हों कि उनके जीवन में शिकायत करने जैसा कुछ है भी! ऐसे ही सपने देखने वाले किंतु जीवन को बिना किसी तुलना और बिना किसी शिकायत के जीने वाले, और हाँ, प्रेम करने वाले पात्रों की कथा है विनोदकुमार शुक्ल का उपन्यास “दीवार में एक खिड़की रहती थी”। "

विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla)

1 जनवरी 1937 को राजनांदगाँव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल बीसवीं शती के सातवें आठवें दशक में एक कवि के रूप में सामने आये। धारा और प्रवाह से बिल्कुल अलग, देखने में सरल किन्तु बनावट में जटिल अपने न्या

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