सुब्बण्णा - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित महान् कन्नड़ कथाकार मास्ति वेंकटेश अय्यंगार को अपनी प्रथम उपन्यासिका 'सुब्बण्णा' के लिए मात्र इतना ही कथा-सूत्र अपने एक मित्र से प्राप्त हुआ था कि एक वारांगना ने एक व्यक्ति को सौ रुपये दिये। इसी सूत्र को पकड़कर उन्होंने एक उपन्यासिका का ताना-बाना बुन डाला और जीवन-दर्शन, संगीत एवं मानव-चरित्र के अनेक आयाम अति संक्षिप्त कलेवर में गुम्फित कर दिये। जिस समय यह रचना प्रकाश में आयी, तब कन्नड़ के कथा-प्रेमी पाठक लघु-उपन्यास के इस रूप से अपरिचित हो थे। मास्ति का यह प्रथम उपन्यास हिन्दी के सुधी पाठकों को भेंट करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को गौरव का अनुभव हो रहा है।
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