पहाड़ से ऊँचा -
डॉ. निशंक ने अपने कथा साहित्य में उत्तराखण्ड को प्राथमिकता के साथ उकेरते हुए पर्वतीय जनजीवन को सजीव रूप से चित्रित किया है। वास्तविकता यह है कि आज़ादी के साठ साल बीत जाने पर भी हमारे पर्वतीय राज्यों, आदिवासी क्षेत्रों तथा अभी तक इन इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोग किस कठिनाईयों में जी रहे हैं इसकी ओर शासन सत्ता का ध्यान बहुत ही कम गया है या फिर गया ही नहीं है। इन्ही कठिनाईयों से उभरे ज़मीनी लेखक डॉ. निशंक लोकतन्त्र के सजग प्रहरी के रूप में शासन सत्ता से जुड़े रहे हैं और उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड की राज्य सरकारों में मन्त्री पद पर रहते हुए उन्होंने दलितों, वंचितों की पीड़ा को निकट से देखा और महसूस किया है।
जहां पर्वतीय जीवन के यथार्थ को अपने कथा साहित्य का आधार बनाने वाले डॉ. निशंक ने पर्वतपुत्रों की त्रासदी को जहाँ यथार्थ रूप में चित्रित किया है, वहीं उन्होंने पर्वतीय महिलाओं की जीवन तथा परिश्रम की गाथाओं को भी चित्रित किया है। मैं दृढ़ता के साथ कह सकता हूँ कि कथाकार के रूप में डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' पर्वतीय जीवन की त्रासदी को ऐसी सजीव अभिव्यक्ति देते हैं कि उनका कथा यथार्थ पाठक के सरोकारों को जीवन्त रूप देता है। निश्यच ही कथाओं में निर्द्वन्द्व सच को उकेरने वाले कथाकार डॉ. निशंक मानवीय संवेदनाओं के सिद्धहस्त शिल्पी है। - डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा 'अरुण' (सदस्य साहित्य अकादेमी)
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