Na Bhooto Na Bhavishyati

Paperback
Hindi
9788181432322
4th
2020
692
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‘न भूतो न भविष्यति’ स्वामी विवेकानन्द की जीवनी नहीं है। यह उनके लक्ष्य, कर्म और संघर्ष के आधार पर लिखा गया एक उपन्यास है। वे संन्यासी थे, अतः सर्वत्यागी थे। मद्रास की एक सभा में उनका परिचय देते हुए कहा गया था कि वे अपना घर परिवार, धन सम्पत्ति, मित्रा बन्धु, राग द्वेष तथा समस्त सांसारिक कामनाएँ त्याग चुके हैं। इस सर्वस्वत्यागी जीवन में यदि अब भी वे किसी से प्रेम करते हैं तो वह भारत माता है; और यदि उन्हें कोई दुःख है, तो भारत माता तथा उसकी सन्तान के अभावों और अपमान का दुःख है। स्वामी विवेकानन्द ने भारत माता को अपमानित और कलंकित करने वालों के देश में पहुँचकर उनकी जनता की पंचायत में उनकी भूल दर्शाई। अपनी माँ के गौरव को स्थापित किया। स्वामी जी के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने तथा उनके कार्य का समर्थन प्रकट करने के लिए, उनके नगर कलकत्ता के नागरिकों ने जो सभा की, उसमें ‘इंडियन मिरर’ के सम्पादक ने कहा, ”वाणी की उपलब्धियों के इतिहास में इससे अधिक चमत्कारिक आज तक और कुछ नहीं हुआ। एक अज्ञात हिन्दू संन्यासी अपने अर्द्धप्राच्य परिधान में एक ऐसी सभा को सम्बोधित कर रहा था, जिसके आधे से अधिक श्रोता उसके नाम का भी शुद्ध उच्चारण नहीं कर सकते थे। वह एक ऐसे विषय पर बोल रहा था जो श्रोताओं के विचारों से कोसों दूर था और उसने तत्काल उनकी श्रद्धा और सम्मान अर्जित कर लिया।“ यह उपन्यास इसी सारी प्रक्रिया का विश्लेषण करता है।

नरेन्द्र कोहली (Narendra Kohli)

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