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Samudra Sangam

Hardbound
Hindi
8126310847
2nd
2005
382
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₹285.00

समुद्र संगम - 'समुद्र संगम' मुग़ल शहज़ादे दाराशुकोह के गुरु प्रसिद्ध कवि पण्डितराज जगन्नाथ की अद्भुत प्रणय कथा है। इसे भोलाशंकर व्यास ने ऐतिहासिक उपन्यासों की प्रचलित परम्परा से अलग हटकर लिखा है। वैसे तो यह उपन्यास एक आत्मकथा है, किन्तु कुशल कथाकार ने इसे औपन्यासिक रूप देकर इसके माध्यम से उस युग की पूरी कहानी ही कह दी है। उपन्यास के प्रमुख चरित्र पण्डितराज के शब्दों में, 'मेरी ज़िन्दगी मात्र कवि, पण्डित या भावुक प्रेमी की ही ज़िन्दगी नहीं है प्रियवर! यह एक ऐसे इन्सान की कहानी है जो सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव के लिए जूझता रहा है। ऐसी हालत में मेरी कहानी युग की कहानी से पूरी जुड़ी हुई है।' समूचे युग को वाणी देने के कारण इस उपन्यास में ऐसे चरित्र भी मिल जायेंगे जो उस समय की राजनीति, दार्शनिक क्रान्ति, साहित्यिक अनुदान, संगीत और चित्रकला के क्षेत्र में हुए प्रयोगों के इतिहास से सम्बद्ध हैं। दरअसल भारतीय इतिहास में यह युग अन्तर्विरोधों का युग है—जहाँ दो विरोधी संस्कृतियों का टकराव भी रहा और उनके समन्वय का प्रयास भी। लेखक ने इस ऐतिहासिक गाथा में कल्पना का भरपूर उपयोग किया है और इसे अद्वितीय, अनुपम रूप दिया है। 'समुद्र-संगम' को नये सिरे से, विस्तार से लिखकर लेखक ने उस युग के परिवेश और मानव-मन की जटिल गुत्थियों को सुलझाया है। इससे पाठक के लिए अनुभव की एक नयी राह खुलती है।

भोलाशंकर व्यास (Bhola Shankar Vyas )

डॉ. भोला शंकर व्यास - जन्म: 16 अक्टूबर, 1923, बूँदी (राजस्थान) में। शिक्षा: एम.ए. (संस्कृत, हिन्दी), एल.एल.बी., पीएच.डी. (हिन्दी), डी.लिट्.। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद से 1983 सेवान

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