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साधारण समाज की रगों से निचुड़ा खून-पसीना राजनीति की मशीन में पहुँच कर किस प्रकार एक 'भव्य अभिनन्दन' बन कर 'कुछ' व्यक्तियों की सत्ता का आधारस्तम्भ बन जाता है-इस कटु तथ्य के आस-पास बुने ताने-बाने से यह उपन्यास-कृति निर्मित है। ...सभी चेहरे हमारे-आपके जाने-पहचाने से लगते हैं। नाम कुछ और होंगे, जगहें कुछ और होंगी...घटनाओं का क्रम भी इसी प्रकार न हो तो क्या हुआ? हमारी सामाजिक-साहित्यिक-राजनीतिक विडम्बना-भरी जिन्दगी पर एकदम अछूता और करारा व्यंग्य। |
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