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Maati Raag

Paperback
Hindi
9789357755467
1st
2024
220
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₹425.00

हरियश राय का यह उपन्यास किसानों के संघर्षमय जीवन और कर्ज़ के जाल में फँसे किसानों की दारुण कथा को हमारे सामने रखता है। किसान कर्ज़ में पैदा होता है, कर्ज़ में ही जीता है, कर्ज़ में ही मर जाता है और कर्ज़ ही विरासत में छोड़ जाता है, यह बात जितनी आज से सौ साल पहले सच थी, उतनी ही सच आज भी है। इस कर्ज़ का बोझ अपने सिर पर लादे वह अपनी माटी को नहीं छोड़ता । अपनी माटी के प्रति उसमें अनुराग है जिसे हरियश राय का यह उपन्यास संवेदनात्मक रूप में दर्ज करता है।

तमाम योजनाओं और आर्थिक सहायता मुहैया कराने के बावजूद, छोटे किसानों का जीवन अभी भी खुशहाली से दूर है। अन्नदाता कहकर किसानों का सम्मान ज़रूर किया गया लेकिन उनके सामने आ रही रोज़-ब-रोज़ की समस्याओं का कोई बुनियादी हल नहीं निकल सका । अपने अधिकारों और अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति पूरी तरह सजग किसान अपने हितों की ख़ातिर आवाज़ उठाने के लिए सड़कों पर आ गये हैं। सच और सम्भावनाओं के बीच से गुज़रता हुआ यह उपन्यास किसानों के जीवन के कई ऐसे कथा-चित्र हमारे सामने रखता है जिन्हें पढ़ना अपने आप को किसानों के प्रति संवेदनशील बनाना है।

माटी-राग उपन्यास का मुख्य किरदार सुमेर सिंह किसानों के लिए एक ऐसी दुनिया रचना चाहता है जहाँ किसान को खुदकुशी न करनी पड़े और जहाँ किसान अपनी ज़मीन पर पूरे विश्वास के साथ फ़सल उपजा सके ।

हरियश राय (Hariyash Rai )

जन्म : 05 अप्रैल 1954 शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. प्रकाशित साहित्य : बर्फ होती नदी, उधर भी सहरा, पहाड़ पर धूप, अन्तिम पड़ाव, वजूद के लिए, मेरी प्रिय कथाएँ, हिसाब-किताब (कहानी संग्रह); नागफनी के जंगल में, मुट्ठ

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