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मायापोत

उपन्यास
Hardbound
Hindi
9789357757232
1st
2024
296
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मायापोत - मैं हँसता हूँ, राधा हँसती है। वह समझती है, रवि मज़ाक़ कर रहा है, मुझे पता है वह सच बोल रहा है। पैसे वह हमेशा से फूँकता है, हमेशा हाथ ख़ाली रहता है, हमेशा किसी-न-किसी बहाने माँ पैसे 'माँगे' जाते हैं। राधा फिर आने के लिए कहकर चली जाती है। रवि मुझे बताता है, उसकी प्रमोशन हो गयी है, पिछले हफ़्ते ही वह स्क्वाड्रन लीडर बना है । मैं पूछता हूँ कि जल्दी प्रमोशन कैसे हो गयी? वह तो अगले साल उम्मीद कर रहा था । वह हँसकर बताता है कि लैंडिंग करते हुए उसने एक और जहाज़ तोड़ा है, बस, प्रमोशन हो गयी । याद नहीं, पिछली लड़ाई में उसने जहाज़ तोड़ा था तो ‘वीरचक्र' मिला था। रवि की शुरू से यह आदत रही है कि अपने बारे में बहुत कम बताता है। यह मुझे पता है कि वायुसेना में उसका बहुत नाम है, वह मास्टर ग्रीन पायलेट है । पिछली लड़ाई में उसने शत्रु के चार सेबर विमानों पर अकेले आक्रमण कर दिया था। उनकी फ़ॉर्मेशन, ब्यूह रचना तोड़ डाली थी, एक जहाज़ मार गिराया था। उसके अपने जहाज़ में लगभग पचास सूराख़ हो गये थे। एक विंग भी आधा टूट गया था, लेकिन फिर भी वह इस टूटे हुए विमान को अपने अड्डे पर वापिस लाने और नीचे उतारने में सफल हो गया था। रूस के तकनीकी कर्मचारी उन दिनों यहीं थे । मिग भी रूस का ही था। टूटे जहाज़ को देखकर उन्होंने कहा था कि इसे नीचे उतारना असम्भव है, मिरेकल है। मैं जानता हूँ, उसकी जल्दी प्रमोशन भी किसी विशेष घटना पर हुई होगी, जहाज़ तोड़ने की बात कहकर टालना चाहता है, अपने बारे में कुछ बखान नहीं करना चाहता ।

- इसी पुस्तक से

स्वदेश दीपक (Swadesh Deepak)

स्वदेश दीपक हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित और प्रशंसित लेखक व नाटककार स्वदेश दीपक का जन्म रावलपिण्डी में 6 अगस्त, 1942 को हुआ। अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. करने के बाद उन्होंने लम्बे समय तक गाँधी म

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