बचपन की स्मृतिया बहुत ट्रस्त करने वाली है । वह ताप्ती रेत पर निरंतर चलती नंगे पैरो की दोड़ जेसी ही है | मेरे पिताजी प्रेस मे कंपोसिडेर थे | गुजर मुश्किल से ही चलता था | पाच भी बहन मे से सबसे बाद था | पिताजी का, लोग कहते थे केसे डूसरी ऑरत से संबंध था | कई राते ऊनकी वही बिताती थी | माँ को की राहसीमाई बीमारी थी | पाता नहीं पिता जी को भी ढीक से पता था के नहीं की माँ को क्या बीमारी थे | शायद ऊनहे पता होगा, पर वह बताते नहीं थे | इतना जरूर ही की बीमारी आसाध्य होगी ओर सक्रमक भी | एसलिए ऊसक नाम नहीं लिया जाता था | मा के सारे बदन मे हड्डीया निकली हुई थी कुछ इस तरह के वह ज़्यादा देर बेध भी नहीं सकती थी | सख्त बिस्तर पर लेटना भए उनेके ब का नहीं था | वह दिन रात कहराती रहती थी | एक नोकरआनी आकर उनके कपड़े धो जाती थी, कभी -कभी उन्हे नहला भी जाती थी | बाकी घर के कपड़े छोटी बहन धोती थी | सुन यह भी था कि डॉक्टर गिज़ा के लिए कहते है, आबोहवा बदलने के लिए कहते है | दोनों छीजे हमारे बस मे नहीं थी | एक बार किसी ने कहा कबूतर का शोरबा पिलो, पर यह भी संभव नहीं था | क्योंकि मा शाकाहारी थीं | वह दवां भी मुश्किल से ही पिटी थी उन्होंने अपने को तिल तिल मरने को स्वीकार कर लिया था| वह भगवान का नाम बजी नहीं लेती थे | उन्हे किसी चीज के जरूरत भी होती तो वह हमे नहीं पुकारती | पुकारती भी तो उनकी कमजोर आवाजज़ हम तक नहीं पहुँचती | हम ही बीच बीच मे उनके कमरे मे जा के पूछ आते - माँ , कुछ चाहिए ? माँ कॉ देख कर कभी नहीं लगा के उनके मन मे कोई अतृप्त इच्छा अटकी होगी | उहए बस दो ही बातों का अफसोस था | एक - ठाकुर जी के सेवा नहीं कर पाती ओर दो- बचो को कुछ बना कर खिला नहीं पती | घर मे तो नहीं, पर बाद मे अस्पताल मे जब हम मा को देखने या खिचड़ी वागेर देने जाते- उनकी आखों मे हमे प्यार करने की एक गहरी ललक छटपटाती नजर आती | हम उसे धिक से समझ नहीं पते | माँ तब बहुत दिनों से हमारे दैनिक सुख- दुख से बाहर थीं इसलिए वह हमरे लिए जैसे दूर के कोई रिश्तेदार हो गई थीं | एक बार अपना हड्डी- हड्डी हाथ मेरे सर पर फेर कर पुछा - तू कोण सी क्लास मे अअ गया ? लेकिन जब मेने बताया तो मानो उन्होंने सुन ही नहीं |
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review