प्रेम न बाड़ी ऊपजै - प्रेम जैसे अत्यन्त नाज़ुक और संवेदनशील विषय को कथा का आधार बनाकर बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में इस उपन्यास 'प्रेम न बाड़ी ऊपजै' को लिखने-रचने का एक विशेष अर्थ है। प्रतिष्ठित कथाकार मिथिलेश्वर ने अपने इस नये उपन्यास के ज़रिये भावना और संवेदना को एक विराट् फलक पर यथार्थ से जोड़ने की गम्भीर कोशिश की है। यह उपन्यास इस बात का भी खरा प्रमाण है मिथिलेश्वर ने गहरी मानवीय अनुभूतियों को बेजोड़ मार्मिक अभिव्यक्ति दी है—अपने रूमानी रूप में और प्रासंगिक यथार्थ के धरातल पर भी। सहज सम्प्रेषणीयता, जीवन-सौन्दर्य, अनुभवों की विविधता और विस्तार, भाषा की ताज़गी तथा गहरे सामाजिक यथार्थ के बहुआयामी संवेदनात्मक चित्र उनके इस उपन्यास में मौजूद हैं।...
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