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अम्बा नहीं, मैं भीष्मा! - भीष्मा यानी अम्बा—महाभारत की वह तेजस्विनी नारी है जो अपने प्रति अन्याय के प्रतिकार के लिए जी-जीकर मरती रही। इस सत्रह वर्षीय किशोरी ने किसी साधारण व्यक्ति को नहीं, युग के प्रचण्ड महारथी, अजेय योद्धा, श्रेष्ठ प्रशासक तथा राजधर्म के अद्वितीय प्रवाचक भीष्म को चुनौती दी थी। स्वयंबर-बेला में अपने मनोनुकूल पति का वरण करने को आतुर अम्बा का, उसकी दो अनुजाओं अम्बिका तथा अम्बालिका सहित भीष्म ने हरण किया था—अपने अनुज से उनका विवाह करने हेतु। इसके बाद तो समाज की रूढ़िग्रस्त मानसिकता के कारण अम्बा के साथ ऐसी घटनाएँ घटती चली गयीं कि वह सदा के लिए पति तथा परिवार सुख से वंचित ही हो गयी। भीष्म दीर्घजीवी थे। अम्बा तीनों जन्मों तक संघर्षरत रही। भीष्म और अम्बा के बीच इस शीतयुद्ध का अन्त महाभारत युद्ध में तब हुआ जब अम्बा शिखण्डी बनकर कुरुक्षेत्र में अवतरित हुई। प्रस्तुत पुस्तक वस्तुत: अम्बा को तर्पण है, जलांजलि के रूप में विनयांजलि है।
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