छोटे राजा -
ज्ञानपीठ पुरस्कार (1983) से सम्मानित कन्नड़ कथाकार मास्ति वेंकटेश अय्यंगार के सर्वाधिक उल्लेखनीय ऐतिहासिक उपन्यास 'चिक्क वीरराजेन्द्र' का हिन्दी रूपान्तर है-छोटे राजा। मैसूर के निकट एक छोटे-से भू-प्रदेश कोडग राज्य के अन्तिम शासक की कहानी है यह । सुशील एवं बुद्धिमती रानी तथा दो योग्य मन्त्रियों के रहते हुए भी अपनी चारित्रिक दुर्बलताओं के कारण उसे अपने विनाश से कोई नहीं रोक पाया; यहाँ तक कि अंग्रेज़ों से पराजित होकर उसे निर्वासन का तिरस्कार भी सहना पड़ा।
छोटे राजा एक शासक के विनाश की कथा ही नहीं है, एक समाज की निरीहता की भी कहानी है। कन्नड़ के ऐतिहासिक उपन्यासों में किसी समाज का और उसके विभिन्न अंगों का ऐसा सजीव चित्रण अन्यत्र कम ही मिलता है। अपने ऐतिहासिक उपन्यासों में मास्ति जी का मूल उद्देश्य समाज के उत्थान-पतन का अध्ययन करना रहा है। उनके अनुसार, व्यक्ति के पतन का मुख्य कारण उस व्यक्ति में ही निहित होता है। हाँ, नियति के अदृश्य हाथ की प्रबल भूमिका भी वहाँ सक्रिय रहती है।
भाषा की सरलता और शैली का सौष्ठव मास्ति जी के लेखन की अपनी विशेषता है। साथ ही, किसी गहन अनुभव को कम से कम शब्दों में सम्पूर्णता देने की अद्भुत क्षमता ने मास्ति के लेखन को एक सराहनीय परिपक्वता प्रदान की है। यही सब कारण हैं कि उनका यह बहुचर्चित उपन्यास हिन्दी कथा-प्रेमियों के लिए भी विशेष रुचिकर बना। पाठकों को समर्पित है इसका नया संस्करण, नयी साज-सज्जा के साथ ।
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