बांग्ला के शीर्षस्थ लेखक शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय का विश्व-प्रसिद्ध उपन्यास देवदास एक अविस्मरणीय प्रेम कथा है। साथ ही, प्रेम की ट्रेजेडी का इतना सशक्त कोई और उदाहरण साहित्य में उपलब्ध नहीं है। कहते हैं, शरत् बाबू अपनी इस रचना से सन्तुष्ट नहीं थे और इसे प्रकाशित करवाना नहीं चाहते थे। लेकिन 1917 में जब देवदास पहली बार प्रकाशित हुआ, तब इसकी धूम मच गई। बांग्ला के पाठक-पाठिकाओं ने इसे सर-आँखों लिया। तभी से यह उपन्यास लगातार इतना लोकप्रिय बना हुआ है कि बहुत-से लोग शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय को देवदास के लेखक के रूप में ही पहचानते हैं। इस उपन्यास को आधार बना कर बांग्ला, हिन्दी, उर्दू, तेलुगु, तमिल और असमिया में कई फिल्में बन चुकी हैं और दर्शकों ने उन्हें बहुत सराहा है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी देवदास को फिल्माया जा चुका है।
यह देवदास, पार्वती और चन्द्रमुखी, तीनों के असफल प्रेम की करुण कथा है, जिसमें प्रेम की भावना उच्चतम रूप में प्रगट हुई है। देवदास और पार्वती बचपन के मित्रा थे, पर उस समय के सामाजिक बन्धनों के कारण उनका परिणय नहीं हो पाता। पार्वती एक अधेड़ जमींदार से ब्याह दी जाती है, पर जीवन भर देवदास को याद करती रहती है। उसके विरह में देवदास शराब और कोठों की जिन्दगी में डूब कर अपने को बरबाद कर लेता है। भटकाव के उन्हीं दिनों में उसकी मुलाकात वार-वधू चन्द्रमुखी से होती है, जो उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर उससे अथाह प्रेम करने लगती है। उसकी पवित्रा स्मृति में वह अपना कुत्सित धन्धा छोड़ कर कोलकाता छोड़ देती है और निकट के एक गाँव में सादगी और सेवा का जीवन जीने लगती है। इधर देवदास की हालत निरन्तर बिगड़ती जाती है। पर उसे पार्वती से मिलना जरूर है, क्योंकि वह इसके लिए वचनबद्ध है। लेकिन जब तक वह पार्वती के गाँव तक पहुँचता है, उसकी जीवन यात्रा समाप्त हो चुकी होती है।
देवदास की ट्रेजेडी इतनी मार्मिक है और चित्राण तथा शैली इतनी शक्तिशाली कि पहले पन्ने से ही पाठक इसकी गिरफ्त में आ जाता है और अन्त तक बँधा रहता है।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review