रामराज्य कहाँ है लोकतन्त्र - आज भी वनवास में जी रहे लोगों की यह रामायण है। यह पग-पग पर सामने आता हुआ दाहक समाज-वास्तव है। आज़ादी मिली परन्तु किसे मिली? अभी भी यहाँ का भय ख़त्म नहीं हुआ है । यह लोकतन्त्र धर्म, जाति, भ्रष्टाचार और अपराध से जकड़ा हुआ है । फिर दलित समाज तो पूर्णतया हाशिये पर है। प्रभु रामचन्द्र ने बारह वर्ष का वनवास सहा । दलित हज़ारों वर्षों से यह वनवास भोग रहे हैं । उनका वनवास कब ख़त्म होगा? जिसके दुखों को हर समय उपेक्षा झेलनी पड़ी उस हाशिये पर धकेले गये इन्सान की यह कहानी है। आज़ादी मिली परन्तु किसे मिली?
सुनीता डागा (Sunita Daga)
सुनीता डागा
अनुवादक और कवयित्री
शिक्षा : एम. ए.
प्रकाशित किताबें :
दाह (मराठी लेखक ल.सि. जाधव की दलित आत्मकथा का हिन्दी अनुवाद) 2016, सुलझे सपने राही के (मराठी के शीर्ष लेखक भारत सासणे के उपन्यास का
शरणकुमार लिंबाले
जन्म : 1 जून 1956
शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी.
हिन्दी में प्रकाशित किताबें : अक्करमाशी (आत्मकथा) 1991, देवता आदमी (कहानी संग्रह) 1994, दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र (समीक्षा) 2000, नरवानर (उपन्