Sadachar Ka Taveez

Paperback
Hindi
9789355188564
19th
2023
136
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सदाचार का तावीज़ - सदाचार भला किसे प्रिय नहीं होता! सदाचार का तावीज़ बाँधते तो वे भी हैं जो सचमुच 'लाचार' होते हैं, और वे भी जो बाहर से 'एक' होकर भी भीतर से सदा 'चार' रहते हैं। यहाँ ध्यान देने की बात यही है कि आपके हाथों में प्रस्तुत सदाचार का तावीज़ किसी और का नहीं—हरिशंकर परसाई का है। परसाई यानी सिर्फ़ परसाई। और इसीलिए यह दावा करना ग़लत नहीं होगा कि सदाचार का तावीज़ भी हिन्दी के व्यंग्य-साहित्य में अपने प्रकार की अद्वितीय कृति है। कुल इकतीस व्यंग्य-कथाओं का संग्रह है यह सदाचार का तावीज़। आकस्मिक नहीं होगा कि ये कहानियाँ आपको, आपके 'समूह' को एकबारगी बेतहाशा चोट दें, झकझोरें, और फिर आप तिलमिला उठें! साथ ही आकस्मिक यह भी नहीं होगा जब यही कहानियाँ आपको अपने 'होने' का अहसास तो दिलायें ही, विवश भी करें कि औरों के साथ मिलकर ख़ुद ही अपने ऊपर क़हक़हे भी आप लगायें!... एक बात यह और कि इन 'तीरमार' कहानियों का स्वर 'सुधार' का हरगिज़ नहीं, बदलने का है; यानी सिर्फ़ इतना कि आपकी चेतना में एक हलचल मच जाये, आपको एक सही 'संज्ञा' मिल सके! प्रस्तुत है पुस्तक का नया संस्करण।

हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai)

हरिशंकर परसाईजन्म: 22 अगस्त, 1924। जन्म-स्थान: जमानी गाँव, जिला होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)। मध्यवित्त परिवार। दो भाई, दो बहनें। स्वयं अविवाहित रहे। मैट्रिक नहीं हुए थे कि माँ की मृत्यु हो गई और लकड़ी के

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