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Ve Ja Rahi Hai Naa

Hardbound
Hindi
9789387919938
1st
2022
128
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₹240.00

वे जा रही हैं ना ! (प्रिंसिपल) - लेखक के लिए समाज और परिस्थितियाँ बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं, कारण—यहीं से विषय प्राप्त होते हैं। हम अपने इर्द-गिर्द अनेकानेक घटनाएँ घटित होते देखते हैं। घटनाक्रम स्वयं और लोगों का आचरण एवं व्यवहार कभी-कभी उस घटना को हास्यास्पद तो कभी अन्य कारणों से विलक्षण बना देते हैं। इन सबको कवि हृदय अपनी दृष्टि से देखता, समझता और हास्य-पुट देता चलता है। बॉस के रिटायरमेंट का इन्तज़ार सभी करते हैं। कुछ वास्तव में चिन्तित होते हैं तो कुछ प्रसन्नवदन! सबके कारण अलग-अलग बॉस का स्वर्ग में कैसा स्वागत होता होगा? यमराज का बही खाता कुछ तो कहता होगा। बॉस के ताप से तपित मृतात्माएँ उनके लिए क्या सज़ा चाहती होंगी? इन दोनों भावों को उकेरता इस व्यंग्य संग्रह का शीर्षक आपको बहुत कुछ सोचने को विवश कर देगा। इस व्यंग्य संग्रह में आपको अलग-अलग भाव छटा, आभा, प्रभा बिखराते नज़र आयेंगे, जो आपको कुछ सोचने पर तो विवश करेंगे ही साथ ही गुदगुदाते भी चलेंगे। कहीं न कहीं आप भी उससे जुड़ते चलेंगे। 'गालियाँ' नामक लेख सम्भवतः आपको अमर्यादित, असभ्य और अवांछित लग सकता है परन्तु पढ़ने के बाद आप पायेंगे कि गालियों का भी अपना संसार है, गालियों का भी मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और वैश्विक स्वरूप है—न जाने क्यों इस पर शोध का अभाव है और चुप्पी को ही शास्त्र मान लिया गया है। बहुत हिम्मत जुटाकर प्रकाशनार्थ दे रहा हूँ। अपशब्द संकेत रूप में ही हैं। प्रत्येक व्यंग्य से पूर्व उसकी पृष्ठभूमि अथवा संकेत देने का प्रयास किया गया है। आशा है आपको ये व्यंग्य संग्रह खिलखिलाने के साथ-साथ आत्मनिरीक्षण करने के लिए भी बाध्य करेगा।

डॉ. प्रदीप कुमार जैन (Dr. Pardeep Kumar Jain )

डॉ. प्रदीप कुमार जैन - 1962 को चाँदनी चौक दिल्ली में जन्म हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएच.डी. और C.I.E. से एम.एड. की उपाधि लेने के पश्चात् विश्व के सर्वोत्तम विद्यालयों—द दून स्कूल, देहरादून और मॉडर

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